ई-पुस्तकें >> फ्लर्ट फ्लर्टप्रतिमा खनका
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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।
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मेरे फ्लैट की बालकनी। रात 9 बजे।
मेरे चेहरे पर एक गलती का एहसास था.... एक खामोशी और एक घुटन बाकी दो और लोगों की मौजूदगी से। मैं पूरी कोशिश कर रहा था कि मेरा सारा ध्यान सिर्फ मेरे वाईन गिलास में बची उन आखरी दो बूँदों पर जमा रहे जिन्हें मैं गिलास के तले पर अन्दर ही अन्दर घुमा रहा था। मैं बालकनी के एक कोने पर पैराफीट वॉल पर बैठा था और सोनू दूसरे कोने पर, अपने खामोश चेहरे पर सारी शिकायतें लिए, फर्श को ताकती हुई। संजय इन दोनों कोनों के बीच की दूरी बैचेनी से चक्कर लगा रहा था।
‘तू अगर पहले बता देता कि तू वाकई उसे चाहता है तो बात इतनी बिगड़ती ही नहीं। तूने मुझे बताया क्यों नहीं?’ आखिरी शब्द वो और जोर से बोला।
‘मैंने जरूरी नहीं समझा।’ मैंने वो दो आखिरी बूँदें जमीन पर गिरा दीं।
संजय का मुँह कुछ देर को खुला ही रह गया।
‘तुमने सुना?’ वो सोनाली की तरफ मुड़ा और एक उँगली मेरी तरफ उठाते हुए- ‘तुम्हें पता है न कि मैं इसे क्या मानता हूँ? अपना दोस्त! अपना भाई! और इसने अपनी अपनी भावनायें मुझसे बताना जरूरी नहीं समझा क्योंकि? ....बस ऐसे ही! वाओ...क्या जवाब है!’ उसने नाटकीयता से ताली बजायी।
शराब मैंने पी थी लेकिन सुरूर उस पर था। मैंने अपना चेहरा दूसरी तरफ घुमा लिया।
‘तूने कभी मुझे अपना भाई समझा?’ वो मेरी तरफ आने लगा।
‘तुम्हें क्या लगता है?’ मैंने कनखियों से उसकी तरफ देखा और धीमे से सवाल किया।
‘तो फिर तूने छुपाया क्यों?’ वो मेरे सामने खड़ा था।
‘वो यहाँ क्यों है?’ मैंने सोनू की तरफ नजरें की।
उसका इस वक्त यहाँ होना बिल्कुल भी जायज नहीं था। संजय उसे अपने साथ ले आया मुझसे पूछे बिना और बताये बिना। ‘मैं उसे फेस नहीं करना चाहता। उसे वापस भेज दो प्लीज!’ हाथ की मुट्ठी भीचें मैंने दीवार पर मार दी।
मैं उसका अपराधी था... उससे चेहरा छुपा रहा था।
संजय ने उसे चले जाने का इशारा किया। जब वो वहाँ से चली गयी।
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