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फ्लर्ट

प्रतिमा खनका

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :609
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9562
आईएसबीएन :9781613014950

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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।

71

मेरा फ्लैट। शाम 4 बजे।


सहमें हुए हाथों से एक के ऊपर एक त्रिकोण रखते हुए उसने ताश के पत्तों का पैरामिड लगभग पूरा कर लिया। संजय पूरी तरह इस बोरियत भरे खेल में डूबा हुआ था और दूसरी तरफ मैं अपने हाथों को कमर के पीछे खींचे, दिवार के सहारे निढाल सा खड़ा इस खेल के खत्म होने का इन्तजार कर रहा था। मेरा फोन बज रहा था। डॉली किसी जगह मेरा इन्तजार कर रही थी लेकिन इस बात की परवाह किसे थी?

‘संजय मम्मी के सामने तुम्हारी जो अच्छी इमेज बनायी हुई है न मैंने, उसका गलत फायदा मत उठाओ प्लीज! मैं अभी शादी के लिए तैयार नहीं हूँ।’

‘कौन होता है?’ उसने एक और त्रिकोण पैरामिड पर सन्तुलित करते हुए कहा ‘तुम्हें फैसला अभी लेना होगा। हम भी लड़कियों से बातचीत करते हैं, उनसे दोस्ती करते हैं लेकिन तुम्हारी तरह उनको अपनी मुसीबत नहीं बना लेते। तुमको कुछ पता नहीं चलता कि कौन तुमको सच में चाहता है कौन इस्तेमाल कर रहा है।’

‘संजय...’

‘चुप... मेरी बात अभी पूरी कहाँ हुई? ये तुम्हारी दोस्ती, इश्कबाजी, ये फ्लर्टिंग सब बन्द! अब एक तरफ हो जाओ। शादी कर लो। नो मोर एक्साइटमेन्ट! ओनली ए बोर बट सटिसफैक्र्टी लाइफ।’ नाटकीयता के साथ वो मुस्कुराया। मुझे यकीन नहीं हो रहा था कि वो इस बात के पीछे इस हद तक पड़ सकता है। वो मुझे डॉली का फोन तक उठाने नहीं दे रहा था।

‘संजय तुम सीरियस नहीं हो सकते। मैं जानता हूँ कि ये तुम नहीं बोल रहे।’ उसने सुना ही नहीं।’संजय इससे मेरे करियर पर बुरा असर पड़ सकता है।’

‘तू लड़की नहीं है। इससे तेरे करियर पर नहीं हाँ लेकिन तेरी फोन बुक पर जरूर बुरा असर पड़ सकता है।’ उसने तिरछी नजरों से मेरे बज रहे मोबाइल को घूरा।

मैं उँगलियों पर गिन सकता था वो दिन जब संजय ने मेरे साथ कोई बात गम्भीर होकर की होगी.... और बदकिस्मती ये दिन उन में से एक था। मैं जानता था कि वो मुझे आज नहीं छोड़ने वाला। मैंने डॉली को एक मैसेज छोडा कि मैं आज नहीं मिल सकता और अपना मोबाइल स्विच ऑफ कर दिया।

अब मैं उससे बहस कर सकता था। मैं उसके सामने जा बैठा।

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