ई-पुस्तकें >> फ्लर्ट फ्लर्टप्रतिमा खनका
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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।
उसने वकील से सारी कागजी खानापूर्ती करने को कहा। जब इन्स्पैक्टर हान्डेकर वकील के साथ व्यस्त हो गया तब, मेरे कान पर फुसफसाते हुए-‘क्या बात! मस्त लग रहे हो यहाँ इस टूटी फूटी पुरानी बेंच पर बैठे हुए।’ वो इतनी बड़ी मुस्कुराहट के साथ मुझे देख रहा था जैसे मैं किसी काम के लिए नवाजा गया हूँ।
‘मैंने कुछ नहीं किया।’
‘तू कभी कुछ नहीं करता।’ उसने खिल्ली सी उडायी। ‘तो ये योगिता कौन है?’
‘मैं सच में नहीं जानता, तुम्हारी ही पार्टी में तो मिला था उसे। बात की... एक दो ड्रिन्क लीं साथ में... बस। मेरे किसी दोस्त से उसने मेरा नम्बर लिया और पिछले हफ्ते कुछ बकवास कर रही थी। मैंने उसे कह दिया कि मेरे दिमाग में ऐसा कुछ नहीं
है। फिर कुछ दिनों तक मुझे मनाती रही। अभी कुछ दिनों पहले तक उसके उल्टे सीधे मैसेज आ रहे थे बस, मुझे लगा नहीं था कि ये सच में ऐसा कर जायेगी।’
‘अगर पता होता तो उसे अपना लेता?’ संजय मुझे टटोला
‘ये अभी यहाँ पूछना जरूरी है? हम बाद में नहीं बात कर सकते इस बारे में अंकल! दोस्ती की शुरूआत उसी ने की थी। मुझे लगा कि सिर्फ दोस्त रहना चाहती है, लेकिन ये तो पागल निकली।’ मैंने सफाई दी।
हम मुसीबत में थे लेकिन संजय तब भी उतना ही हँसमुख और शान्त था। अपने परिवार और काम दोनों के लिए बहुत ज्यादा सचेत लेकिन मैंने शायद ही उसे कभी किसी चिन्ता में देखा होगा। हर काम हँसते मुस्कुराते पूरा कर लेने की अजीब सी ताकत थी उसमें।
ये मामला भी आसान नहीं था लेकिन उसने आधे घण्टे से ज्यादा वक्त नहीं लिया।
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