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फ्लर्ट

प्रतिमा खनका

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :609
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9562
आईएसबीएन :9781613014950

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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।

63

अगली सुबह 10 बजे।


जैसे ही मैं बाथरूम से नहाकर निकला, रेनू जो मेरे कमरे में ही नाश्ते की ट्रे लिये खड़ी थी, ने बताया कि प्रीती काफी देर से हार्न बजा रही है।

मैंने जैसे तैसे अपनी जीन्स पैरों पर खींचीं। टी शर्ट और मोबाइल हाथ में लिया और नीचे भाग आया।

‘तेरा नाश्ता भाई?’ रेनू ने पीछे से आवाज दी।

‘मैं कहीं खा लूँगा।’ मैं रुका नहीं।

टी शर्ट गले में डालते हुए मैं सीढ़ियों से तेजी से नीचे आ रहा था कि देखा माँ और गति मेरी तरफ देखकर देखकर दबी सी हँसी हँस रहे हैं।

‘क्या हुआ?’ मैंने चाल थोड़ी धीमी की।

उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया बस एक दूसरे को देखकर इस तरह मुस्कुराने लगे मानों एक दूजे से कह रहे हों- जरा देखो तो इसे!

प्रीती मेरे गेट से कुछ 8-10 कदम ही दूर खड़ी थी अपने पापा की ग्रे रंग की ऑडी आर8 के साथ, वाईन रंग की खूबसूरत सी साड़ी में लिपटी हुई। इस तरह के लिबास में मैं उसे पहली बार देख रहा था और पहली बार मुझे उसकी खूबसूरती दिखायी दी।

गीले बालों से पानी झाड़ने के लिए सिर झटकते हुए मैं उसके पास पहुँचा। उसकी तारीफ में मेरे मुँह से कुछ निकलने वाला था मगर उससे पहले ही-

‘अपने बाल एक बार और झटक सकते हो? लुक्स ऑसम।’ अब मैं कुछ भी बोलने लायक ही कहाँ बचा था। बस मेरी मुस्कुराहट थोड़ी बढ़ गयी उसका कमेन्ट नजरअन्दाज करने के लिए।

‘तो तुम ड्राईव करने वाली हो?’ मैंने बोनट पर हाथ फेरते हुए पूछा

‘नहीं तुम, मुझे देखनी है तुम्हारी ड्राइव।’

‘मेरी ड्राइव? क्यों?’

‘पता नहीं। खुशी-सी हो रही है कि तुमको गाड़ी चलाते हुए देखूँगी। पता नहीं डर के चलाते हो या एन्जॉय करते हो ड्राइव को, मैं देखना चाहती हूँ, प्लीज अंश।’ उसने दूसरी तरफ का दरवाजा खोला और गाड़ी में बैठ गयी।

‘मैं वैसे भी चलाने वाला था, इतनी मिन्नत करने की जरूरत नहीं है।’ मैं गाड़ी में बैठ गया ‘...अब जरा सीट बेल्ट लगा लो’

‘नहीं मैं ठीक हूँ, जरूरत नहीं है।’

‘लगा लो, जरूरत पडे़गी।’ मैंने गाड़ी स्टार्ट कर दी।

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