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फ्लर्ट

प्रतिमा खनका

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :609
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9562
आईएसबीएन :9781613014950

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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।

57


यामिनी अक्सर ही मुझसे कहा करती थी कि मेरे साथ जी नहीं सकती लेकिन मर सकती है। मैं उसकी इस बात को अजमाना चाहता था। ये उसके प्यार को मेरी आखिरी पुकार थी।

कई दिनों बाद मैं उसके फ्लैट, उससे मिलने जा रहा था, उसके लिए कुछ था मेरे पास। अब या तो ये अध्याय हमेशा के लिए खुल जाता या फिर हमेशा के लिए बन्द हो जाता!

मैं उससे मिलने आ रहा हूँ ये उसे नहीं पता था। मैंने बताया ही नहीं।

दरवाजे पर मुझे देख कर वो चौंक गयी.... और अन्दर जाकर मैं।

कोई 34-36 साल का एक आदमी। सर पर पीछे की तरफ चिपके बाल, फ्रेन्च कट शेव, सोने की मोटी चेन की कुछ तीन चार लडियाँ उसके गले में झूल रहीं थीं। बेहद आराम से उसके सोफे पर आधा लेटा हुआ था। सूरत से ही उसकी रही सी झलक रही थी। मैं उसे लेकर कोई अन्दाजा लगाता इससे पहले ही वो बोल पड़ी।

‘अंश ये मेरे दोस्त हैं, साहिल!’ बड़ी तमीज से यामिनी ने उसका परिचय दिया। मैंने उस आदमी पर जमीं सी अपनी नजरें हटायीं और उसके तारूफ को नजरअन्दाज करते हुए- ‘तुमसे बात करनी थी, जरा बाहर आ सकती हो?’

‘क्या बात करनी थी, यहीं बता दो, साहिल पराये नहीं हैं।’

‘हाँ वो तो मैं देख ही सकता हूँ। लेकिन ये आपकी राय है, मेरी नहीं।’ मैं बाहर आ गया। यामिनी भी मेरे पीछे चली आयी।

‘कहो अंश। बताया भी नहीं कि आ रहे हो?’

‘हाँ, नहीं बताया। मुझे लगा कि अगर बता दूँगा तो तुम शायद न मिलो।’ मैं कारीडोर पर रुक गया।

‘ऐसा नहीं है कहो कुछ काम था?’ वो बहुत सुकून में थी। अपने अतीत से वो पूरी तरह बाहर आ चुकी थी। ‘तो मैं इस सरप्राईज विजिट की वजह जान सकती हूँ?’ मेरी हालत से वो बिल्कुल ही बेखबर थी।

‘वैल...’ मैंने सोचते हुए होंठों पर जीभ फेरी। चारों तरफ नजरे घूम रही थीं मेरी। ‘कहने तो मैं कुछ और ही आया था लेकिन, अब सिर्फ इतना जानना चाहता हूँ कि....’ पता नहीं मुझे पूछना चाहिये या नहीं? ‘...साहिल से तुम्हारा क्या रिश्ता है?’ मैंने पूछ ही लिया।

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