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फ्लर्ट

प्रतिमा खनका

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :609
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9562
आईएसबीएन :9781613014950

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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।

‘हैरोइन।’ उसने धीमे से कहा

आखिर मेरी सोच सही निकली!

‘तो अब ये सब भी करना होगा?’ मैं अपनी हँसी रोक ना पाया। उसकी भी थमी हुई साँसे अब चलने लगीं। उसके चेहरे से तनाव कम हो गया। मेरी तरफ घूमते हुए-

‘शुक्र मना कि तू लड़की नहीं है नहीं तो और भी पता नहीं क्या-क्या करना पड़ता।’

‘गुड। और ये तो उससे बहुत अलग काम है। है ना?’ मैं उस पर फिर हॅसा।

‘देख मैं तुम्हें फोर्स नहीं कर रहा। उनके पास कई ऑप्शन है। कुछ एक तो लड़कियाँ भी हैं जो ये काम बड़े आराम से कर लेंगी लेकिन मैं उन्हें निराश नहीं करना चाहता। मैं ये कान्टेक्ट खराब भी नहीं कर सकता। इससे हम टॉप पर पहुँच जायेंगे।’

‘और मैं जेल में, वो भी हमेशा के लिए।’ मैं ये बहस खत्म कर देना चाहता था। बेहतर था कि मैं वहाँ से चल दूँ।

मैंने उसकी मेज पर रखा अपना सेल फोन उठा लिया।

‘लेकिन अंश....’

‘ये मैं नहीं कर सकता संजय और जिस तरह से तुम मुझे बता रहे हो मुझे नहीं लगता कि ये काम तुम खुशी से कर रहे हो। मेरा परिवार है मेरे पीछे संजय !’ मैंने बात खत्म कर दी और जाने लगा।

‘मैं चाहता तो तुमको बताये बिना भी तुमसे ये काम करवा लेता लेकिन मैं ऐसा करके अपने रिश्ते नहीं खराब करना चाहता तुम्हारे साथ।’ वो मेरे पीछे आया। ‘अंश इसमें उतना खतरा नहीं है जितना तुम सोच रहे हो।’ उसने मेरे कन्धे पर हाथ रखा। ‘वो लोग मुम्बई से हमें आस्ट्रेलिया तक माल क्लीयर कराने की गारन्टी दे रहे हैं। तुम एड शूट के बहाने वहाँ जाओगे और बाकी हम पर छोड़ दो। तुम एक मॉडल से ब्रेन्ड अम्बैस्डर बन जाओगे अंश, पता है इसका मतलब?’ वो जोर देने लगा। ‘तुम सालों तक कुछ ना भी करो तो मार्केट जायेगा नहीं तुम्हारे हाथ से!’ लोभ! लोलुपता! इसकी कोई सीमा नहीं होती। संजय जैसा रहीस और कामयाब आदमी भी एक छोटी सी लालच में आकर किसी भूखे.... बेहद भूखे इन्सान के जैसे गिडगिडा रहा था। मुझे यूँ तो उस पर नाराज होना चाहिये था लेकिन उस पर तरस आ रहा था उस वक्त। जो हाथ उसने मेरे कन्धे पर रखा था उस पर अपना हाथ रखकर- ‘संजय, मैं इस तरह की चीजों को करने के फेवर में नहीं हूँ। मेरा परिवार है मेरे पीछे। मैं अपनी जिन्दगी तो एक बार दाँव पर लगा सकता हूँ लेकिन उनकी नहीं। प्लीज अण्डरस्टैन्ड।’

मैं ठण्डे लहजे से अपनी बात कह कर वहाँ से चला आया।

इस बार उसने मुझे रोका नहीं, बस जाते हुए देखता रहा।

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