लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> फ्लर्ट

फ्लर्ट

प्रतिमा खनका

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :609
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9562
आईएसबीएन :9781613014950

Like this Hindi book 3 पाठकों को प्रिय

347 पाठक हैं

जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।

‘शिट्!’ मैंने आँखें मींच लीं। एक ग्लानि सी भर गयी मुझमें। एक गहरी साँस के साथ मैं डॉली की तरफ मुडा- ‘कोई और वजह भी है?’ उसने ना में सिर हिला दिया। अपने हाथ में पड़ी अँगूठी को मरोडते हुए- ‘डॉली वो वक्त ही ऐसा था और यकीन करो उस चिढ़, उस गुस्से की वजह तुम नहीं थीं..... कोई और था। शायद..... शायद मैं खुद।’ मैं दोबारा केबिन की तरफ चलने लगा।

वाकई वजह मैं खुद था। आखिर अपनी ही सुलगती भावनाओं के लिए मैं किसी दूसरे को कैसे जिम्मेदार मान सकता हूँ? ये मेरा ही दिल था जो दुंखा था। ये मेरा भरोसा था जो टूटा था। ये मेरा कसूर था कि मैंने किसी से प्यार किया।

संजय के केबिन में दाखिल होते हुए मैंने एक बार फिर डॉली की तरफ देखा। वो वहीं खड़ी थी। पहली बार उसके चेहरे पर मुस्कुराहट थी वो भी मुझे देखते हुए। पहली बार मुझे वो दिखायी दिया जो अब तक एक डर, एक झेंप की पर्त के नीचे दबा हुआ था। ये एक नयी शुरूआत थी.... हमारी।

यामिनी से दूरियाँ बढ़ाने के लिए सिर्फ काम काफी नहीं था मुझे कोई और सहारा भी चाहिये था।

मुझे यकीन था कि डॉली मेरी भावनाओं का रुख बदल सकेगी और मैं कुछ हद तक सही था। कुछ दो चार महीनों में मेरे मन का बोझ कम होने लगा लेकिन पूरी तरह खत्म नहीं हो पाया क्योंकि उससे पहले ही जिसकी यादों का बोझ था मेरे दिल पर उसे मेरी याद आने लगी... यामिनी। अब तक जिसने मेरे दर्द की खबर तक नहीं ली थी उसे अचानक मेरे जख्म दिखायी देने लगे। वो ये जताने लगी कि दूरियाँ सिर्फ मुझे ही तकलीफ नहीं दे रहीं, उसे भी दे रहीं हैं।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

लोगों की राय

No reviews for this book