ई-पुस्तकें >> एकाग्रता का रहस्य एकाग्रता का रहस्यस्वामी विवेकानन्द
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एकाग्रता ही सभी प्रकार के ज्ञान की नींव है, इसके बिना कुछ भी करना सम्भव नहीं है।
एकाग्रता में ही सफलता
एकाग्रता में ही सफलता का रहस्य निहित है – इस बात को समझ लेने वाले सचमुच ही बुद्धिमान हैं। एकाग्रता को केवल योगियों के लिए ही आवश्यक समझना एक बड़ी भूल है। एकाग्रता प्रत्येक व्यक्ति के लिए आवश्यक है, भले ही वह किसी भी कार्य में क्यों न लगा हो। देखने में आता है कि लौहकारों, नाइयों, स्वर्णकारों तथा जुलाहों में सहज रूप से ही एकाग्रता विकसित हो जाती है। हथौड़ा चलाते समय लोहार यदि जरा-सा भी चूक जाय, तो सम्भव है कि वह अपने ही हाथों को कुचल डाले। नाई का उस्तरा यदि गलती से फिसल जाय तो त्वचा में घाव हो जाने की आशंका है। यदि बढ़ई की पकड़ रुखानी से ढीली पड़ी तो हो सकता है कि वह अपने अंगूठे से ही हाथ धो बैठे। इसी प्रकार सुनार का कार्य भी निःसन्देह अत्यंत जटिल है। बुनकर यदि अपने करघे पर दृष्टि स्थिर रखे तभी वह अच्छी गुणवत्ता वाले कपड़े बुन सकता है। परन्तु इनमें से कोई भी व्याख्यान सुनकर या पुस्तकों की सहायता से एकाग्रता का अभ्यास लहीं करता। उनके कार्यों की आवश्यकता के अनुसार उत्पन्न परिस्थितियों ने ही उनमें एकाग्रता का विकास कर दिया है। वे कौन सी परिस्थितियाँ हैं? ये कि उनके कार्य में जरा सी चूक उनके लिए एक भयानक दुर्घटना का कारण बन सकती है। उपरोक्त सभी कार्यों में जोखिम बना रहता है। इसी कारण उन्हें अपने मन को संयमित कर बड़ी सावधानीपूर्वक कार्य करना पड़ता है। इस प्रकार वे अपने व्यवसायिक कार्य में एक प्रकार की एकाग्रता प्राप्त कर लेते हैं। इतना ही नहीं ऐसे असंख्य उदाहरण हैं, जिसमें पीढ़ी दर पीढ़ी ऐसी एकाग्रता देखने को मिलती है। उदाहरणार्थ आई.टी.आई. में शिल्पविद्या सीख रहे प्रशिक्षणार्थियों में यदि कोई लोहार का लड़का है, तो वह अन्य लड़कों की अपेक्षा शीघ्र इस कला में निपुण हो जाता है। अन्य दूसरे पेशों में भी ऐसा ही होता है, यह बहुत ही कम देखा गया है कि कोई व्यक्ति किसी नये कार्य में शीघ्र दक्षता प्राप्त कर ले।
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