ई-पुस्तकें >> एक नदी दो पाट एक नदी दो पाटगुलशन नन्दा
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'रमन, यह नया संसार है। नव आशाएँ, नव आकांक्षाएँ, इन साधारण बातों से क्या भय।
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ज्योंही तूफ़ान एक्सप्रेस पटना स्टेशन पर रुकी, माधवी नीचे उतरकर इधर-इधर देखने लगी। उसकी दृष्टि अपने चाचा को खोज रही थी। विनोद गाड़ी से सामान उतरवाने लगा।
विनोद को पटना उतर जाना बड़ा विचित्र लगा; परन्तु माधवी के बार-बार आग्रह करने पर वह इन्कार न कर सका। दूसरे, उसने सोचा, जितने दिन भी उसके साथ कट जाएँ, वही अच्छे। सामान नीचे रखवाकर उसने माधवी से पूछा-'कहाँ हैं तुम्हारे चाचा?'
'वह रहे। माधवी ने थोड़ी दूर भीड़ में अपने चाचा को देखकर कहा। माधवी उनकी ओर लपकी और मिलते ही उन्होंने उसे गले से लगा लिया। जहाज़ की दुर्घटना के पश्चात् उसे अपने सामने खड़ा देखकर जैसे उन्हें विश्वास न आ रहा हो। वह बार-बार प्यार से उसे गले लगा लेते।
'ओह...अंकल! मैं तो आपसे इनका परिचय भी न करा सकी।'
'आप...मिस्टर बरमन ने विनोद को विस्मय से देखते हुए कहा।
'यह हैं मिस्टर विनोद...रंगून से मेरे साथ ही आए हैं और सच पूछिए तो मेरा यह दूसरा जीवन इन्हीं के कारण हुआ।' यह कहकर माधवी ने अपने चाचा को वहीं खड़े-खड़े संक्षेप में जहाज़ से रह जाने की बात सुना दी और चंचलता भरी आँखों से विनोद की ओर देखने लगी। बरमन साहब ने हाथ मिलाते हुए विनोद का धन्यवाद किया।
कृतज्ञ तो मुझे होना चाहिए।' विनोद ने उत्तर देते हुए कहा-इन्हीं के कहने से मैंने इनका साथ दिया और हम मृत्यु के पंजे से बच गए।'
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