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भक्तियोग
भक्तियोग
प्रकाशक :
भारतीय साहित्य संग्रह |
प्रकाशित वर्ष : 2016 |
पृष्ठ :146
मुखपृष्ठ :
Ebook
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पुस्तक क्रमांक : 9558
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आईएसबीएन :9781613013427 |
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स्वामीजी के भक्तियोग पर व्याख्यान
भक्तियोग
प्रार्थना
स तन्मयो ह्यमृत ईशसंस्थो
ज्ञ: सर्वगो भुवनस्यास्य गोप्ता।
य ईशेऽस्य जगतो नित्यमेव
नान्यो हेतु: विद्यते ईशनाय।।
''वह विश्व की आत्मा है, अमरणधर्मा और ईश्वररूप से स्थित है, वह सर्वज्ञ, सर्वगत इस भुवन का रक्षक है, जो सर्वदा इस जगत् का शासन करता है; क्योंकि इसका शासन करने के लिए और कोई समर्थ नहीं है।''
यो ब्रह्माणं विदधाति पूर्वं
यो वै वेदांश्च प्रहिणोति तस्मै।
तं ह देवम् आत्मबुद्धिप्रकाशं
मुमुक्षुर्वै शरणमहं प्रपद्ये।।
''जिसने सृष्टि के आरम्भ में ब्रह्मा को उत्पन्न किया और जिसने उसके लिए वेदों को प्रवृत्त किया, आत्मबुद्धि को प्रकाशित करनेवाले उस देव की मैं मुमुक्षु शरण ग्रहण करता हूँ।'' - श्वेताश्वतर उपनिषद् 6/17-18
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