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भगवान बुद्ध की वाणी

स्वामी ब्रह्मस्थानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :72
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9553
आईएसबीएन :9781613012871

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भगवान बुद्ध के वचन

 

जीवन के बहुत से घरों ने मुझे रोका-

उसे खोजते हुए

जिसने खड़ा किया

इन इन्द्रियों के दुःखपूर्ण कैदखानों को,

मेरा अनवरत संघर्ष वेदनापूर्ण था।

पर अब,

तू (जो) इस आश्रय का निर्माता (है) -

मैं तुझे जानता हूँ।

तू फिर

कभी नहीं उठाएगा

पीड़ा की इन दीवारों को,

न ही छलावों की जड़ों के

वृक्षों को उगाएगा,

न मिट्टी पर नये बेड़े ही लगाएगा,

तेरा घर टूट चुका है और

छप्पर की कमानी टूट गयी है।

भ्रम ने इसे बनाया था!

मैं वहाँ से सुरक्षित गुजरता हूँ -

मुक्ति पाने के लिए।

।। समाप्त।।

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