ई-पुस्तकें >> भगवान बुद्ध की वाणी भगवान बुद्ध की वाणीस्वामी ब्रह्मस्थानन्द
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भगवान बुद्ध के वचन
जीवन के बहुत से घरों ने मुझे रोका-
उसे खोजते हुए
जिसने खड़ा किया
इन इन्द्रियों के दुःखपूर्ण कैदखानों को,
मेरा अनवरत संघर्ष वेदनापूर्ण था।
पर अब,
तू (जो) इस आश्रय का निर्माता (है) -
मैं तुझे जानता हूँ।
तू फिर
कभी नहीं उठाएगा
पीड़ा की इन दीवारों को,
न ही छलावों की जड़ों के
वृक्षों को उगाएगा,
न मिट्टी पर नये बेड़े ही लगाएगा,
तेरा घर टूट चुका है और
छप्पर की कमानी टूट गयी है।
भ्रम ने इसे बनाया था!
मैं वहाँ से सुरक्षित गुजरता हूँ -
मुक्ति पाने के लिए।
।। समाप्त।।
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