लोगों की राय

उपन्यास >> अवतरण

अवतरण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :590
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9552
आईएसबीएन :9781613010389

Like this Hindi book 4 पाठकों को प्रिय

137 पाठक हैं

हिन्दुओं में यह किंवदंति है कि यदि महाभारत की कथा की जायें तो कथा समाप्त होने से पूर्व ही सुनने वालों में लाठी चल जाती है।


‘‘मैं खड़ा हो गया और वह भीतर चला गया। उस मार्ग पर, जो उस आगार के बाहर बना हुआ था, कोई व्यक्ति नहीं था। वह स्थान सर्वथा निर्जन था। इससे मैं विस्मय में खड़ा विचार कर रहा था। उस समय एक युवती, जो कमर से नीचे धबली बाँधे हुए थी और स्तनों को समेटने के लिए अंगिया के रूप में छाती पर कपड़ा लपेटे हुए थी, शेष शरीर पर जिसके कोई परिधान नहीं था, आगार से निकली और मुझसे बोली, ‘संजयजी!’

‘‘मैंने उसकी ओर देखा तो वह मुस्काई और बोली, ‘आइये!’ और मैं उसके पीछे-पीछे आगार में चला गया। भीतर अनेक युवक-युवतियाँ आदरयुक्त मुद्रा में खड़े थे। युवक तो पूर्ण पहरावा, अंगरखा, दुपट्टा और धोती पहने हुए थे। और स्त्रियाँ प्रायः वैसे ही वस्त्र पहने हुए थीं जैसा कि मैंने अभी बताया है।’’

‘‘यह आगार तो एक प्रकार का प्रतीक्षा करने का स्थान था। इसको लाँघकर तुमको एक भीतरी आगार में जाने का संकेत किया गया। मैं भीतर गया तो सेविका बाहर ही रह गई और उसने इस भीतरी आगार का द्वार बन्द कर दिया।’’

‘‘भीतर जो दृश्य देखा वह बड़े-बड़े ब्रह्माचारियों को भी विचलित करने वाला था। इन्द्र और शची सामने सिंहासन पर बैठे थे। भीतर केवल युवतियाँ ही थीं और वे अर्ध-नग्नावस्था में, आगार की दीवार का ढासना लगाने हुए भूमि पर बैठी एक-दूसरे के गले में बाँहें डाले परस्पर कल्लोल कर रही थी। मेरे भीतर जाने पर उनकी इस प्रकिया में किसी प्रकार का व्यवधान नहीं आया। वास्तव में किसी ने मेरी ओर ध्यान ही नहीं दिया।’’

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book