लोगों की राय

उपन्यास >> अवतरण

अवतरण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :590
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9552
आईएसबीएन :9781613010389

Like this Hindi book 4 पाठकों को प्रिय

137 पाठक हैं

हिन्दुओं में यह किंवदंति है कि यदि महाभारत की कथा की जायें तो कथा समाप्त होने से पूर्व ही सुनने वालों में लाठी चल जाती है।


‘‘उस समय साधु त्रसित थे। दुष्ट फल फूल रहे थे। और राज्य दुष्टों का संरक्षण कर रहा था। तब भी राज्य जैसे आज है जनता के समर्थन से ही चल सकता था। अतः दुष्टों के रक्षक का समर्थन करने वाली प्रजा भी उस पाप के लिए उत्तरदायी थी जो राज्य कर रहा था और उस काल में हुई घटनाएँ घटित होनी ही थीं। वे हुईं।’’

‘‘अभिप्राय यह है कि कृष्ण अर्जुन को युद्ध की प्रेरणा न भी देता और अर्जुन युद्ध के लिए तैयार न भी होता तो भी दुर्योंधन का विनाश होता ही। यही कहना है आपका? तो भी इसका श्रेय किसी को नहीं और इतने बड़े ग्रन्थ को लिखने में कुछ भी प्रयोजन नहीं?’’

‘‘नहीं, मेरा अभिप्राय यह नहीं है। मेरे कहने का अर्थ यह है कि जब पृथ्वी पर पाप व्याप्त हो गया तो कृष्ण का जन्म होना ही था। अर्जुनादि को युद्ध करना ही था। यह सब उस समय के श्रेष्ठजनों की योजना के अनुसार था, परन्तु कृष्ण ने युक्ति से उसको पुनः कर्तव्यपरायण कर दिया।

‘‘कृष्ण ने जब यह कहा था–
धर्म संस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे।

तो उसने उस योजना का ही उल्लेख किया था, जिसमें सत्य की विजय हुआ करती है और पाप का नाश हुआ करता है।’’

‘‘परन्तु क्या सत्य की विजय हुई थी?’’

‘‘निस्संदेह हुई थी।’’

‘‘क्या युद्ध में कृष्ण ने झूठ बोल-बोलकर पाण्डवों की विजय नहीं कराई थी?’’

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book