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असंभव क्रांति

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :405
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9551
आईएसबीएन :9781613014509

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माथेराम में दिये गये प्रवचन

काम का रूपांतरण

सुबह मैंने उर्वशी की कथा कही। उससे दोपहर उन्हें अत्यत कामोत्तेजक स्वप्न आया। तो उन्होंने चाहा है कि मैं ऐसी बातें न कहूँ जिनसे कामवासना भड़क उठे। मैं तो सिर्फ सत्य जानने का रास्ता बताऊं।

मेरी कथा से उनकी कामवासना जाग्रत हुई है, या कि कामवासना उनमें दबी हुई पड़ी थी, मेरी कथा उसे बाहर निकाल लाई है। एक कुएं में हम बाल्टी डालते हैं, बाल्टी में पानी भरकर बाहर आ जाता है, क्योंकि कुएं में पानी है। अगर कुआं खाली हो तो बाल्टी हम कितनी ही डालें, और कितनी ही बड़ी, और कितनी ही अच्छी, कुएं से पानी नहीं आ सकेगा। बाल्टी पानी केवल बाहर लाती है, होता कुएं में पानी है। लेकिन अगर हम बाल्टी को दोष दें कि इसकी वजह से ही यह पानी आ गया तो गलती हो जाएगी। बाल्टी केवल खबर ले आती है कि भीतर पानी है। और हम न भी बाल्टी डालें तो पानी विलीन नहीं हो जाता, वह मौजूद है।

उर्वशी की कहानी से अगर मन में वासना उठी, स्वप्न आया तो उसका अर्थ है, दबी हुई वासना मन में है। वह न हो तो उर्वशी की कथा तो दूर, उर्वशी भी खुद आ जाए तो उसे नहीं उठा सकेगी। और अगर उर्वशी की कथा से इतना डर है तो फिर उर्वशी के आने पर क्या होगा और उर्वशी की कोई कमी तो नहीं है? सब तरफ उर्वशी मौजूद है। फिर क्या करेंगे ऐसा भयभीत होकर कहाँ जिएंगे, कैसे जिएंगे?

यह तो अच्छा हुआ कि मैंने कथा कही और आपको स्वप्न आया, यह और भी अच्छा हुआ। इसे थोड़ा निरीक्षण करें, इसे थोड़ा आब्जर्व करें, इस स्वप्न की घटना का थोड़ा विश्लेषण करें, थोड़ी एनालिसिस करें तो शायद बड़ा कीमती का हो सकेगा यह स्वप्न। नहीं कहता कथा तो यह स्वप्न न आता और आप विश्लेषण से भी बच जाते।

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