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असंभव क्रांति

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :405
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9551
आईएसबीएन :9781613014509

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माथेराम में दिये गये प्रवचन

उस गांव में एक यात्री भूला-भटका हुआ पहाड़ों पर किसी दूसरे गांव का पहुँचा, उस गांव से निकला। उसने उस गाँव की हालत देखी। वह हैरान हो गया। उसे विश्वास न आया कि अंधकार को दूर करना भी इतनी कठिन बात है, क्या अंधकार से भी हारने की कोई वजह, कोई कारण है क्या?

उसने उस गांव के लोगों को कहा कि पागल हो तुम। अंधकार बहुत शक्तिशाली नहीं है। तुम इसलिए नहीं हारते हो कि अंधकार शक्तिशाली है और तुम कमजोर हो। तुम हारते इसलिए हो कि तुम अंधकार को सीधा हटाने का उपाय करते हो। अंधकार सीधा नहीं हटाया जा सकता है। इसलिए नहीं हटाया जा सकता कि अंधकार की कोई सत्ता, कोई एक्जिस्टेंस ही नहीं होता है। अंधकार तो केवल प्रकाश की अनुपस्थिति का नाम है। वह तो केवल प्रकाश की एबसेंस है। उसका अपना कोई होना नहीं है कि तुम उसे हटा सको। अंधकार को मत हटाओ, प्रकाश को जलाओ। और प्रकाश जल आता है तो अंधकार कहीं भी नहीं पाया जाता है। उसने दो पत्थरों से चोट की और प्रकाश को जलाकर उन्हें बताया। वे हैरान हो गए। वे अपनी आंखों पर विश्वास न कर सके कि जो बात इतनी कठिन थी, वह इतनी सरल निकलेगी। प्रकाश आया और अंधकार नहीं था।

पता नहीं यह कहानी कहाँ तक सच है। और सच हो या न हो, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। लेकिन पूरी मनुष्य जाति अंधकार को दूर करने में लगी हुई है। और अंधकार को दूर करने की इस चेष्टा में अंधकार तो दूर नहीं होता, प्रकाश भी उपलब्ध नहीं होता--लेकिन मनुष्य जरूर दीन-हीन फ्रस्ट्रेटेड, मनुष्य जरूर चिंतातुर, मनुष्य जरूर तनाव से भर जाता है और इस सीमा तक यह बात पहुँच जाती है कि मनुष्य विक्षिप्त हो उठता है।

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