लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> असंभव क्रांति

असंभव क्रांति

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :405
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9551
आईएसबीएन :9781613014509

Like this Hindi book 5 पाठकों को प्रिय

434 पाठक हैं

माथेराम में दिये गये प्रवचन

मैं तो लाइफ-अफरमेशन को, जीवन के स्वीकार को, जीवन के प्रति आदर को, जीवन के प्रति परिपूर्ण प्रेम को, जीवन जैसा है--उस जीवन की समग्रता में, उसकी स्वीकृति को ही संन्यास कहता हूँ। जीवन को पूरे ढंग से जीना ही संन्यास है। भाग जाना नहीं, आँख बंद कर लेना नहीं।

लेकिन ऐसा संन्यासी अभी पैदा होने को है, जो जीवन का शत्रु न हो, मित्र हो। और जिस दिन भी हम ऐसे संन्यासी को जन्म दे सकेंगे, उसी दिन धर्म और जीवन के बीच जो आज खाई खुदी है, वह समाप्त हो जाएगी। जीवन और धर्म एक हो सकेगा। तब मंदिर और दुकान को अलग रहने की जरूरत न रहेगी। तब दुकान मंदिर हो सकती है।

वैसे मंदिर तो बहुत दिनों से दुकान हो ही चुका है। लेकिन दुकान मंदिर नहीं हो पाई है। तब बाजार, जीवन की सघनता से पहाड़ की चोटियों पर भागने का कोई सवाल नहीं है। कपड़े बदलने का, घर-द्वार छोड़ देने का न ही कोई सवाल है। तब सवाल है स्वयं को बदल लेने का। और जो लोग स्वयं को नहीं बदलना चाहते, वे छोटी-मोटी बदलाहट करके स्वयं को कंसोलेशंस दे लेते हैं, सात्वना दे लेते हैं--कि हमने अपने को बदल लिया।

यह धोखा बहुत चल चुका। ऐसे संन्यास को अब कोई जगह, आने वाली मनुष्य की चेतना में नहीं होनी चाहिए। और हमने बहुत अहित भी भोग लिया। हमने बहुत अमंगल भी भोग लिया। हमने जीवन को बहुत रूप से उपेक्षित करके, दुखी, परेशान, बेचैन भी, अशांत भी बना लिया। लेकिन अब तक भी जीवन की परिपूर्ण स्वीकृति को लेने वाले धर्म को, विचार को हम जन्म नहीं  सके। कहीं आसमान से वह पैदा होगा भी नहीं। हम ही उसे मार्ग देंगे, तो वह पैदा हो सकता है।

तो मैं संन्यास के तो पक्ष में हूँ, लेकिन संन्यासी के नहीं। क्योंकि संन्यास एक और ही क्रांति है, जिससे व्यक्ति गुजर जाता है। और संन्यासी हो जाना एक ढोंग है। जो लोग क्रांति से बिना गुजरे, क्रांति से गुजर जाने का वहम पाल लेना चाहते हैं, उनके लिए बड़ा सुगम उपाय है।

और कभी तो हैरानी होती है कि तथाकथित बड़े-बड़े नाम भी बच्चे मालूम पड़ते हैं। उनके आग्रह इतनी छोटी-छोटी बातों के होते हैं कि हैरानी होती है। और इतनी क्षुद्र बातों में जिनका चित्त लीन होता हो, इतनी क्षुद्र बातों में जो निरंतर ग्रस्त रहते हों, वे भी विराट की तरफ उड़ान भर पाते होंगे, इसकी कल्पना भी नहीं हो सकती।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai