लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> असंभव क्रांति

असंभव क्रांति

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :405
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9551
आईएसबीएन :9781613014509

Like this Hindi book 5 पाठकों को प्रिय

434 पाठक हैं

माथेराम में दिये गये प्रवचन

हमारा चित्त निरंतर की आदत के कारण या तो पीछे की स्मृतियों में खोया रहता है, जिनकी अब कोई जगह नहीं रह गई जमीन पर, पृथ्वी पर। सत्ता में जिनके कोई चिह्न नहीं रह गए, सिवाय हमारी मेमोरी, हमारी स्मृति को छोड़कर। और या फिर हम भविष्य की ऊहापोह में, कल्पना में, आने वाले कल के इरादे और विचारों में खोए रहते हैं। ये दोनों ही तरह के लोग कभी भी सत्य को नहीं जान सकते हैं। क्योंकि सत्य है वर्तमान में--इस क्षण में, अभी और यहाँ। और हम अभी और यहाँ कभी भी नहीं होते हैं। हम कहीं पीछे या कहीं आगे होते हैं।

बुद्ध बारह वर्षों के बाद अपने गांव वापस लौटे थे। उनके पिता बुद्ध का स्वागत करने गांव के बाहर गए। लेकिन मन में उनके बहुत क्रोध था। बारह वर्ष पहले यह लड़का घर-द्वार छोड़कर भाग गया था, उसकी पीड़ा थी, दुःख था। जाकर उन्होंने बुद्ध से कहा, तू अभी भी वापस लौट आ, मेरे द्वार खुले हैं। बहुत चोट, बहुत दुःख तूने मुझे पहुँचाया है, लेकिन आखिर मैं पिता हूँ। पिता का प्रेम मैं अपने दरवाजे बंद नहीं कर सकता, तुझे क्षमा कर दूंगा, तू वापस आ जा।

बुद्ध ने क्या कहा, पता है?

बुद्ध ने कहा मैं निवेदन करूंगा, कृपा करके आप एक बार मुझे देखे, जो मैं हूँ। जो बारह साल पहले आपके घर से गया था, वह अब कहीं भी नहीं है। मैं दूसरा ही होकर लौटा हूँ। मैं बिलकुल नया हूँ। और आप मुझे देख ही नहीं रहे हैं, क्योंकि आपकी आंखों में बारह वर्ष पहले का चित्र ही मौजूद है। आप उसी से बातें कर रहे है, जो बारह साल पहले था। गंगा में बहुत पानी बह गया बारह वर्षों में, मुझमे भी बहुत पानी बह गया बारह वर्षों में, मैं अब बिलकुल दूसरा आदमी होकर लौटा हूँ।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai