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असंभव क्रांति

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :405
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9551
आईएसबीएन :9781613014509

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माथेराम में दिये गये प्रवचन

सुरक्षा कहीं भी नहीं है। और सुरक्षा के कारण आप व्यर्थ जो सो रहे हैं, वह सारे जीवन को, जीवन के आनंद-उत्फुल्लता से, ज्ञान से वंचित कर रहा है।

तो इन दिनों ऐसे जिएं, जैसे आप जागे हुए हैं प्रतिपल, होश से भरे हुए हैं। एक-एक घटना, एक-एक पत्थर, एक-एक पत्ता, एक-एक पत्ते पर चमकती सूरज की रोशनी, चांद की रोशनी बदलियों पर--सब आपको दिखाई पड़ रहा है, आप जागे हुए हैं। सब चीजों के प्रति आप सचेत हैं। जीवन एक खतरा है और आप चेतना से भरे हुए हैं। उठते-बैठते सब तरह से जागे हुए हैं।

जागे हुए होने का अर्थ एक छोटी कहानी से समझाऊं, फिर मैं अपनी चर्चा पूरी करूं।

एक बहुत अदभुत आदमी था। वह चोरों का गुरु था। सच तो यह है कि चोरों के अतिरिक्त और किसी का कोई गुरु होता ही नहीं। चोरी सीखने के लिए गुरु की बड़ी जरूरत है। तो जहाँ-जहाँ चोरी, वहाँ-वहाँ गुरु। जहाँ-जहाँ गुरु, वहाँ-वहाँ चोरी। तो वह चोरों का गुरु था, मास्टर थीफ था। उस जैसा कुशल कोई चोर नहीं था। कुशलता थी। वह तो एक टेकनिक था, एक शिल्प था। जब बूढ़ा हो गया तो उसके लड़के ने कहा कि मुझे भी सिखा दे। उसके गुरु ने कहा, यह बड़ी कठिन बात है।

पिता ने चोरी करनी बंद कर दी थी। उसने कहा, यह बहुत कठिन बात है। फिर मैंने चोरी करनी बंद कर दी, क्योंकि चोरी में कुछ ऐसी घटनाएं घटी कि जिनके कारण मैं ही बदल या। उसके लड़के ने पूछा, कौन सी घटनाएं? उसने कहा, कुछ ऐसे खतरे आए कि उन खतरों में मैं इतना जाग गया--जागने की वजह से चोरी मुश्किल हो गई। और जागने की वजह से उस संपत्ति का खयाल आया है, जो सोने के कारण दिखाई नहीं पड़ती थी। अब मैं एक दूसरी ही चोरी में लग गया हूँ। अब मैं परमात्मा की चोरी कर रहा हूँ। पहले आदमियों की चोरी करता रहा।

लेकिन मैं तुम्हें कोशिश करूंगा, शायद तुम्हें भी यह हो जाए। चाहता तो यही हूँ कि तुम आदमियों के चोर मत बनो, परमात्मा के ही चोर बनो। लेकिन शुरुआत आदमियों की चोरी से कर देने में भी कोई हर्जा नहीं है।

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