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असंभव क्रांति

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :405
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9551
आईएसबीएन :9781613014509

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माथेराम में दिये गये प्रवचन

फिर वहाँ गए। बच्चा पैर लटकाए वहाँ फव्वारे पर बैठा हुआ था। उसकी पत्नी ने, फ्रायड की पत्नी ने कहा, हैरानी की बात है, तुमने कैसे खोज निकाला कि यह बच्चा वहाँ होगा। उसने कहा, अब तक यही भूल दुनिया में चल रही है। हम अब तक नहीं खोज निकाल पाए कि जिस चीज का निषेध किया जाता है, इनकार किया जाता है, उसमें आकर्षण पैदा हो जाता है। इस बच्चे को कहा गया, फव्वारे पर मत जाना। सारा बगीचा व्यर्थ हो गया, फव्वारा ही सार्थक हो गया। इसके चित्त में फव्वारे ने केंद्र की जगह ले ली। अब इस बगीचे में जानने और पहचानने और जाने जैसी चीज फव्वारा हो गया। अब बाकी सब बेकार है। बाकी जहाँ जाया जा सकता है वहाँ कभी भी जाया जा सकता है। इस फव्वारे पर जाना एकदम जरूरी है। इसे चूक जाना ठीक नहीं है।

आदमी ने सेक्स के बाबत जितना निषेध और विरोध किया है, उतना ही आदमी का चित्त सेक्स के फव्वारे पर ही पैर लटकाए हुए बैठा है। सामान्य नियम है निषेध आकर्षण पैदा करता है। निषेध विकृति पैदा करता है। स्वीकृति आकर्षण को समाप्त कर देती है। स्वीकार करने का साहस होना चाहिए। तथ्यों को वैज्ञानिक दृष्टि होनी चाहिए देखने की। और जब हम किसी तथ्य को सीधा स्वीकार करते हैं तो एक बड़ा बल, एक बड़ी ताकत पैदा होती है। और फिर एक रोग हमारे भीतर जो पैदा होता है निषेध से, वह बंद हो जाएगा।

यहाँ इस नगर में हम आए हुए हैं, शायद नगर के, इस गांव के लोगों को पता भी नहीं होगा। अगर आप गांव में दो-चार जगह पोस्टर लगा देते और लिख देते कि फलां-फलां जगह मीटिंग हो रही है, वहाँ कोई भी नहीं आ सकता है। वहाँ आना मना है। तो यह मैदान खाली नहीं रह सकता था। फिर इस गांव में शायद ही कोई एकाध बुद्धिमान आदमी होता जो न आ जाता। मामला क्या है वहाँ जाना जरूरी हो जाता।

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