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असंभव क्रांति

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :405
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9551
आईएसबीएन :9781613014509

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माथेराम में दिये गये प्रवचन

बच्चों के मन में सेक्स के प्रति बचपन से ही हम घृणा पैदा करते हैं, घबड़ाहट पैदा करते हैं, डर और भय पैदा करते हैं। जैसे सेक्स जीवन का हिस्सा न हो। बच्चे को पता ही नहीं चलता। सोचना शुरू करता है, विचारना शुरू करता है तो हम सब भांति की दीवालें खड़ी करते हैं कि उसको पता न चल जाए। लेकिन जो जीवन का तथ्य है उससे हम बचा सकेंगे।

वह तो पता चलेगा, आपके कोई उपाय उसे नहीं रोक सकेंगे। और जब आप रोकेंगे तो वह रुग्ण रूप से उत्सुक हो जाएगा, उसमें आप्सेशन पैदा हो जाएगा। क्योंकि उसके मन में रस पैदा होगा कि क्यों रोका जा रहा हूँ मैं, क्यों इस संबंधं में कुछ नहीं कहा जाता, क्यों इस संबंध को छुपाया जाता है, बात क्या है कोई जरूर बहुत गुरु-गंभीर मामला है कोई, कोई छुपाने की बात है, कोई सीक्रेट है।

तो वह चारों तरफ से यह खोजने की कोशिश करेगा, सीक्रेट क्या है इसका। चारों तरफ वह खोज करेगा, खोज करेगा और गलत रास्तों से गलत बातें इकट्ठी करेगा। और डरेगा भी, भयभीत भी होगा, घबड़ाएगा भी कि किसी को पता न चल जाए कि मैं यह जानने लगा हूँ जो कि नहीं जानना चाहिए था। और यह रुग्ण चित्त में बच्चे का चित्त बड़ा होकर बीस वर्ष तक आएगा। सेक्स के प्रति उसके मन में घाव पैदा कर दिया आपने। अब जीवनभर इस घाव के इर्द-गिर्द वह घूमेगा इससे छुटकारा नहीं पा सकता है।

अगर बच्चे को हम बचपन से ही सेक्स के सारे तथ्य स्पष्ट बताना शुरू करें, बताने चाहिए, और सेक्स के प्रति एक आदर का भाव पैदा करें, क्योंकि वही जीवन का जन्म देने वाला केंद्र और सूत्र है, तो बच्चे के मन में यह घाव कभी पैदा नहीं होगा। उसे कभी भय होने का कारण नहीं होगा। वह कभी डरेगा नहीं। वह जीवन की इस केंद्रीय शक्ति से कभी आँख नहीं छिपाएगा। उसके मन में घाव पैदा नहीं होगा, चोट पैदा नहीं होगी। उसका मन स्वस्थ रह सकेगा।

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