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असंभव क्रांति

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :405
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9551
आईएसबीएन :9781613014509

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माथेराम में दिये गये प्रवचन

सारी प्रजा में घबड़ाहट फैल गई। लोगों ने राजा से प्रार्थना की यह क्या पागलपन हो रहा है। इतनी धूल उठा दी गई है कि हमारा जीना दूभर हो गया, सांस लेना मुश्किल है। कृपा करके ये धूल के बादल वापस बिठाए जांए। कोई और रास्ता खोजा जाए। फिर हजारों मजदूरों को कहा गया कि वे जाकर पानी भरें और सारी पृथ्वी को सीचें। नदी और तालाब सूख गए। लाखों भिश्तियों ने सारी राजधानी को, राजधानी के आसपास की भूमि को पानी से सींचा। कीचड मच गई, गरीबों के झोंपडे बह गए। बहुत मुसीबत खड़ी हो गई। फिर राजा से प्रार्थना की गई कि यह क्या हो रहा है--क्या आप हमें जीने न देगें- क्या आपके पैर में एक कांटा लगता है तो हम सबका जीवन मुश्किल हो जाएगा कोई और सरल रास्ता खोजें।

और तभी एक बूढ़े आदमी ने आकर राजा को कहा, मैं यह जूता आपके लिए बना लाया हूँ, इसे पहन लें, कांटा फिर आपको न गडेगा और हमारा जीवन भी बच जाएगा। राजा हैरान हुआ। इतना सरल उपाय भी हो सकता था क्या? पैर ढके देखकर वह चकित हो गया। क्या कोई इतना बुद्धिमान मनुष्य भी था जिसने इतनी सरलता से बात हल कर दी, जिसे लाखों विद्वान हल न कर सके। करोडों रुपया खर्च हुआ, हजारों लोग परेशान हुए—इतनी सरल बात थी।

और सारे पंडित, सारे विद्वान क्रोध और ईर्ष्या से भर गए--यह बूढा आदमी खतरनाक था।

इस सब के प्रति, इस बूढ़े आदमी के प्रति, उन सबके मन में तीव्र रोष भर गया। उन्होंने कहा, जरूर इस आदमी को शैतान ने ही सहायता दी होगी। क्योंकि हम इतने विचारशील लोग नहीं खोज पाए जो बात, इसने खोज ली है। जरूर इसमें कोई खतरा है।

राजा को उन्होंने समझाया। यह जूता खतरनाक सिद्ध होगा, शैतान का हाथ इसमें होना चाहिए। क्योंकि हमारी सारी बुद्धिमत्ता जो नहीं खोज सकी, यह बूढा आदमी कैसे खोज लेगा राजा को उन्होंने भड़काया, समझाया। राजा भयभीत हो गया। उस बूढ़े आदमी को सूली दे दी गई। वह पहला समझदार आदमी सूली पर चढ़ा। और उसके बाद जितने लोगों ने यह सलाह दी है कि कृपा करें, पृथ्वी को परेशान न करें, अपने पैर ढक लें, उन सभी को सूली दी जाती रही है।

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