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असंभव क्रांति

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :405
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9551
आईएसबीएन :9781613014509

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माथेराम में दिये गये प्रवचन

अगर एक बीमार आदमी को खयाल हो जाए कि मैं स्वस्थ हूँ, तो फिर फिर उसकी बीमारी के उपचार की क्या सभावना रही वह अपनी बीमारी को मिटाने के लिए क्या करेगा वह कुछ भी नहीं करेगा। लेकिन इस खयाल से कि मैं स्वस्थ हूँ, वह स्वस्थ हो नहीं जाता है, रहता तो बीमार है। लेकिन इस खयाल के कारण बीमारी को भीतर सरकने का, जीने का, मौका मिल जाता है। बीमारी की मिटने की सारी संभावना समाप्त हो जाती है।

बीमारी को मिटाने के लिए, बीमारी को पूरी तरह जानना जरूरी है। बीमारी से मुक्त होने के लिए बीमारी को भुलाना सबसे घातक बात है। और हम सब अपनी बीमारियों को भुलाकर बैठ जाते हैं। हम सब तरकीबें निकाल लेते हैं कि बीमारी भूल जाएं। और फिर बीमारी जीती है, भीतर सरकती है। अपरिचित और अनजान हो जाने के कारण, अनकांशस हो जाने के कारण, अचेतन हो जाने के कारण, हमारा उससे ऊपर से कोई संबंध नहीं रह जाता, लेकिन प्राणों को भीतर-भीतर वह रौंद डालती है। मनुष्य इसलिए अस्वस्थ है। मनुष्य का चित्त इसलिए अस्वस्थ है।

इस पूरी बात को अगर हम सक्षिप्त में समझें तो इसका यह अर्थ हुआ कि मनुष्य तथ्यों को छिपाने के लिए आदर्शों का उपयोग करता है। वह जो फैक्ट्स हैं, उनको छिपाने के लिए फिक्शन खड़े करता है। जो तथ्य हैं, जो सच्चाइयां हैं, उन्हे छिपाने के लिए झूठी कल्पनाएं और आदर्श और आइडिअल्स खड़े करता है। और फिर इन आदर्शों के कारण तथ्यों को भूल जाता है। लेकिन तथ्य है, वे भूलने से मिटते नहीं है।

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