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अपने अपने अजनबी

सच्चिदानंद हीरानन्द वात्स्यायन अज्ञेय

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :165
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9550
आईएसबीएन :9781613012154

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अज्ञैय की प्रसिद्ध रचना - सर्दियों के समय भारी हिमपात के बाद उत्तरी ध्रूव के पास रूस में अटके दो लोगों की कहानी।


थोड़ी देर बाद उठकर उसने अपने खाने के लिए कुछ बनाना शुरू किया तो बाहर से यान एकेलोफ की आवाज आयी :

'खाने को कुछ है ?'

सेल्मा ने एक बार सिर से पैर तक यान को देखकर कहा, 'ईंधन की तो बहुत कमी है। कुछ बनाने में दुगुने दाम लगेंगे।'

यान थोड़ी देर एकटक उसकी ओर देखता रहा। फिर बोला, 'स्टोव तो मेरे पास है। अगर दुकान से कुछ कच्ची चीज भी मिल जाए - थोड़ा आटा या सूखा गोश्त ही मिल जाए तो भी काम चला लूँगा।'

'कितना क्या चाहिए ?'

सामान लेने के लिए मुड़ते हुए सेल्मा ने कहा, 'दाम तो तुरन्त दे दोगे न?'

यान ने थोड़े अचम्भे से कहा, 'आँ-हाँ' फिर थोड़ा रुककर बोला, 'मैं कभी हिसाब बेबाक किए बिना भागा न होऊँ ऐसा तो नहीं कह सकता, लेकिन इस वक्त तो तुम्हें इसका डर नहीं होना चाहिए!'

थोड़ी देर बार सेल्मा ने एक बड़ा लिफाफा यान की ओर बढ़ाते हुए दाम बताये तो यान चौंक पड़ा। उसे लगा कि शायद सुनने में भूल हुई है। लेकिन जब सेल्मा ने अपनी बात दोहरायी तब उसने चुपचाप पैसे निकालकर दे दिये और लिफाफा उठाकर चला गया। उसे याद नहीं था कि जीवन में पहले कभी वह बिना 'थैंक्स' कहे यों सौदा उठा ले गया है।

उस दिन फिर वह नहीं आया। सेल्मा ने इसकी सम्भावना की थी कि वह फिर आएगा, क्योंकि जो सौदा वह ले गया था वह अगले दिन तक के लिए काफी नहीं था। एक बार उसे फोटोग्राफर का भी ध्यान आया था। लेकिन वह उसकी ओर नहीं आया। वह यान की अपेक्षा अधिक सम्पन्न भी था। असम्भव नहीं कि उसके यहाँ खाने-पीने का कुछ सामान हो। सेल्मा ने धीरे-धीरे सब परदे खींच दिये और भीतर कहीं खो गयी।

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