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अपने अपने अजनबी

सच्चिदानंद हीरानन्द वात्स्यायन अज्ञेय

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :165
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9550
आईएसबीएन :9781613012154

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अज्ञैय की प्रसिद्ध रचना - सर्दियों के समय भारी हिमपात के बाद उत्तरी ध्रूव के पास रूस में अटके दो लोगों की कहानी।


श्रीमती एकेलोफ ने बात बदलने के ढंग से कहा, 'फिर यह भी देखना चाहिए कि इस केबिन में रसद-सामान कितना है - यों जाड़ा काटने के लिये सब सामान होना तो चाहिए। चलो, देखें।'

योके वापस मुड़ी और अपने पीछे श्रीमती एकेलोफ के धीमे, भारी और कुछ घिसटते हुए पैरों की चाप सुनती हुई रसोई की ओर बढ़ चली। रसोई के और उसके साथ के भंडारे से दोनों ही प्रश्नों का उत्तर मिल सकेगा - रसद का अनुमान भी हो जाएगा और अगर बर्फ के बोझ के पार प्रकाश की हलकी-सी भी किरण दीखने की सम्भावना होगी तो वहीं से दीख जाएगी। क्योंकि उसका रुख दक्षिण-पूर्व को है और धूप यहीं पड़ सकती है - धूप तो अभी क्या होगी, पर इस बर्फ के झक्कड़ में जितना भी प्रकाश होगा उधर ही को होगा।

दोनों ही प्रश्नों का उत्तर एक ही मिलता जान पड़ा - कि जो कुछ है जाड़ों भर के लिए काफी है। खाने-पीने का सामान भी है और चर्बी के स्टोव के लिये काफी ईंधन भी; और शायद जितनी बर्फ के नीचे वे दब गयी हैं उसके मार्च से पहले गलने की सम्भावना बहुत कम है। बर्फ की तह शायद इतनी मोटी न भी हो कि बाहर से उसे काटना असम्भव हो, लेकिन बाहर से उसे काटेगा कौन, और भीतर से अगर काटना शुरू करके वे इस एक हिमपात के पार तक पहुँच भी सकें तो तब तक और बर्फ न पड़ जाएगी इसका क्या भरोसा है? यह तो जाड़ों के आरम्भ का तूफान था, इसके बाद तो बराबर और बर्फ पड़ती ही जाएगी। उन्हें तो यही सुसंयोग मानना चाहिए कि वे बर्फ के नीचे ही दबीं, जिससे केबिन बचा रह गया और अब जाड़ों भर सुरक्षित ही समझना चाहिए। अगर उसके साथ चट्टान भी टूटकर गिर गयी होती - तब -

इस कल्पना से योके सिहर उठी और बोली, 'चलिए, चलकर बैठें। अभी तो कुछ करने को नहीं है, थोड़ी देर में भोजन की तैयारी करूँगी।'

दूसरे कमरे में जाकर बैठते हुए श्रीमती एकेलोफ ने कहा, 'अबकी बार बिलकुल पूरा क्रिसमस होगा। क्रिसमस के साथ बर्फ जरूर होनी चाहिए और अबकी बार बर्फ-ही-बर्फ होगी - नीचे - ऊपर सब ओर बर्फ-ही-बर्फ।'

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