ई-पुस्तकें >> अंतिम संदेश अंतिम संदेशखलील जिब्रान
|
6 पाठकों को प्रिय 9 पाठक हैं |
विचार प्रधान कहानियों के द्वारा मानवता के संदेश
और बड़ी ही कोमल दृष्टि से उसने उसे देखा, क्योंकि वह ही थी, जिसने उसकी अनुपस्थिति में उसकी मां के पलकों को बन्द किया था जबकि मृत्यु के श्वेत पंखों ने उसे समेट लिया था।
उत्तर में उसने कहा, "बारह साल। तुम कहती हो बारह साल, करीमा! मैं अपनी आकांक्षाओं के सितारों को दण्ड से नहीं मापता और न मैं उसकी गहराई आवाज से चीन्हता हूं, क्योंकि प्रेम जब घर के प्यार में उन्मत्त हो जाता है तो समय की माप और समय की आवाज को भी शून्य बना देता है।’’
"कुछ ऐसे क्षण होते हैं, जोकि जुदाई की सदियों को अपने में समा लेते हैं, और जुदाई क्या है, दिमाग का खालीपन। शायद हम तो जुदा ही नहीं हुए थे।"
और अलमुस्तफा ने लोगों पर एक निगाह डाली। उसने उन सभी को एक बार देखा - जवान और बूढे़, बलवान और हंसोडे़, वे जो वायु और सूर्य के सम्पर्क से गुलाबी हो गए थे, और वे जिनके चेहरे पीले थे, और उन सभी के चेहरो पर इच्छाओं और प्रश्नों की मांग अंकित थी।
उनमें से एक बोला, "प्रभो जीवन ने हमारी आशाओं और आकांक्षाओं के साथ कठोर व्यवहार किया है। और हमारे ह्रदय दुखी हैं, हम कुछ नहीं समझ पाते। मैं आपसे प्रार्थना करता हूं कि आप हमें सांत्वना दें और हमारे दुःखों का अर्थ समझाएं।"
उसका ह्रदय दयालुता से द्रवित हो उठा और बोला, "जीवन समस्त जीवित वस्तुओं से बडा़, जैसे कि सुन्दरता के पंख लगने से पहले सुन्दरता ने जन्म लिया, और जैसे कि सत्य उच्चारण होने से पहले भी सत्य ही था।”
"जीवन हमारी खामोशियों में गाता है और हमारी निद्रा में सपने देखता है, तब भी जबकि हम परजित और विनीत होते हैं, जीवन राजसिंहासन पर बैंठता है और बलवान् बनता है। और जबकि हम सोते हैं, जीवन आने वाले दिन भर मुस्कराता है, और तब भी स्वतन्त्र रहता है, जबकि हम गुलामी की जंजीरों को घसीटते चलते हैं।
|