ई-पुस्तकें >> अंतिम संदेश अंतिम संदेशखलील जिब्रान
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विचार प्रधान कहानियों के द्वारा मानवता के संदेश
"इससे तो यही अच्छा होता कि वह राजकुमार एक साधारण व्यक्ति होता, एक ऐसा मनुष्य, जो कहीं का नहीं है और किसी एक समय का नहीं है, जो भोजन तथा आश्रय ढूंढ़ रहा है, अथवा वह एक बटोही ही होता, केवल लकडी़ औऱ एक मिट्टी के बरतन ही जिसके साथ हैं, क्योंकि तभी तो रात्रि को वह अपने जैसों से भेंट करेगा और कवियों से, जो न किसी जगह के हैं और न किसी एक समय के, औऱ उनकी भिक्षा तथा उनकी स्मृतियों और उनके सपनों में हिस्सा बांटेगा।”
"और देखो, राजा की बेटी निद्रा से जाग पड़ी औऱ उसने अपना रेशमी लिबास पहना, अपना हीरे और लाल पहने, बालों पर ओढ़नी ओढ़ी औऱ अपनी उंगलियों को अम्बर* (*एक वृक्ष से निकलने़ वाला एक प्रकार का पीले रंग का सुगन्धित पदार्थ) में डुबाया। तब वह अपनी अटारी से नीचे बगीचे में उतरी, जहां कि रात की ओस ने उसकी सुनहरी जूतियों को चूमा।”
"रात्रि की निस्तब्धता में राजा की बेटी बगीचे में प्रेम खोजने निकली, किन्तु उसके पिता के विस्तीर्ण साम्राज्य में एक भी नहीं था, जो उसका प्रेमी हो।”
"इससे तो यही अच्छा होता कि वह एक हलवाहे की बेटी होती, अपनी निद्रा एक खेत में पूरी करती तथा सन्ध्या समय पैरों पर रास्ते की धूल जमाये तथा वस्त्रों की परत में अंगूर के बगीचे की सुगन्ध लिये अपने पिता के घर लौटती, और जब रात्रि की देवी इस संसार में प्रवेश करती, तो वह अपने पैरों को चोरी से घाटी की ओर ले जाती, जहां उसका प्रेमी उसकी प्रतीक्षा करता होता।"
“अथवा वह एक मठ में पुजारिन होती और धूप के स्थान पर अपना हृदय़ जलाती, जिससे कि उसका हृदय वायु तक पहुंच सके और उसकी आत्मा को शून्य बना सके अथवा एक दीपक होती, एक प्रकाश को महान् प्रकाश की ओर उठाने के लिए, उन सबके साथ, जोकि पूजा करते हैं, जो प्रेमी हैं और प्रेमिकाएं।
"अथवा वह वर्षों द्वारा बनाई गई एक बूढी़ स्त्री होती और धूप में बैठकर यह सोचती कि उसके यौवन में किसने साझा किया था।"
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