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अमृत द्वार

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :266
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9546
आईएसबीएन :9781613014509

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ओशो की प्रेरणात्मक कहानियाँ

जिन्होंने व्यवस्था की वे पूरी तरह पुरुष वर्ग की तरफ से व्यवस्था दे रहे हैं। उनका बोध बिलकुल स्पष्ट है कि वह पुरुष की सुरक्षा कर रहे हैं और स्त्री की हत्या कर रहे हैं। लेकिन जो स्त्रियां सती हुईं, उनको कुछ भी पता नहीं है। और जिन पुरुषों ने उन स्त्रियों को सती होने की आज्ञा दी उनको भी कुछ पता नहीं है कि यह एक पुरुष की साजिश है, जो स्त्री के खिलाफ चल रही है हजारों साल से।

यह जिन लोगों ने मनु--महाराज जैसे लोगों ने, जिन्होंने व्यवस्था दी कि दान दो, उन्हें बहुत स्पष्ट है समाज की व्यवस्था का हिसाब, कि अगर नीचे का दरिद्र होता चला जाता है और ऊपर के समृद्ध समाज से उसे कोई भी सहारा, कोई भी संतोष, कोई भी सांत्वना नहीं मिलती तो यह समाज चार दिन नहीं चल सकता। यह समाज उखड़ जाएगा। इसी वक्त टूट जाएगा यह समाज को अगर चलाना है तो दरिद्र को थोड़ी बहुत तृप्ति देते रहना अत्यंत आवश्यक है। समाज की जिन्होंने व्यवस्था दी है उनके सामने बहुत स्पष्ट है कि नीचे का जो वर्ग है वहां से विद्रोह की संभावना एकदम स्पष्ट है। अगर संतोष न सिखाया जाए उस वर्ग को, क्रांति अनिवार्य रूप से फलित हो जाएगी। इसलिए जिन मुल्कों में इस तरह की व्यवस्था देने का लंबा इतिहास है, वहां कोई क्रांति नहीं हो सकी।

अगर रूस या चीन जैसे मुल्कों में क्रांति हो सकी तो उसके पीछे बहुत से कारणों में एक कारण यह भी है कि धार्मिकता का ऐसा लंबा इतिहास नहीं है जो दरिद्र को दान देने की, दरिद्र की सेवा की और दरिद्र को टुकड़े फेंकने की उसने कोई बहुत व्यवस्था की। उस वजह से और कारण हैं, उस वजह ने भी हाथ बटाया। हिंदुस्तान में पांच हजार साल में कोई क्रांति नहीं हुई, किसी तरह की क्रांति नहीं जानी हिंदुस्तान ने। उसका कारण है, यहां जिन्होंने नीति दी है, समाज को, उन्होंने बहुत दूरगामी विचार किया है। साफ बात देख ली हैं कि नीचे का जो वर्ग है वह आज नहीं कल उपद्रव का कारण होने वाला है। उसके उपद्रव को तोड देने के हर तरह के उपाय किए गए। एक उपाय कि उसे संतोष देने की निरंतर व्यवस्था होनी चाहिए। उसका असंतोष कभी इतना न हो जाए तीव्र कि उबल पड़े सौ डिग्री तक वह कभी न पहुँच पाए। वह अठानवे, सतानवे से नीचे उतरता रहे, बार-बार उतरता रहे, वहां न पहुँच जाए जहाँ कि उबाल आ जाए -- एक। उनको यह समझाने की जरूरत है कि वह दरिद्र है तो इस कारण दरिद्र है कि पिछले जन्मों के उसके पाप हैं। अमीर अगर कोई अमीर है तो इसलिए अमीर है कि पिछले जन्म के पुण्य हैं।

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