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अमृत द्वार

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :266
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9546
आईएसबीएन :9781613014509

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ओशो की प्रेरणात्मक कहानियाँ

प्रश्न-- अस्पष्ट

उत्तर-- वह सक्रिय ध्यान का प्रयोग है जागरूकता। समस्त क्रियाओं के प्रति, चित्त की क्रियाओं के प्रति शून्य में भी जाने का माध्यम भी जागरूकता ही है, जैसे आधा घंटा रहेंगे तो आप क्या करेंगे, उस आधा घंटा में चित्त में आपके जो भी विचार चल रहे हों उनके प्रति केवल जागरूक होना है, केवल साक्षी होना है। और क्या करिएगा? साक्षी भर हो जाना है, देखते रहे चुपचाप वह चले। लेकिन हमारे देखने में बाधा आती है, हम तल्लीन हो जाते हैं, साक्षी नहीं रह पाते। हम कब उन्हीं विचारों में एक हो गए उसका पता नहीं रहता है। यह बोध मिट जाता है, मूर्च्छा आ जाती है। एक विचार आया मन में, कोई स्मृति आयी। हम देखने वाले नहीं रह जाते, उसी विचार और उस प्रवाह के हिस्से हो-- यह मूर्च्छा है।

और इसके विपरीत जागरूकता है कि हम उसके हिस्से नहीं हो रहे। विचार आ रहा है, हम ऐसे ही देख रहे हैं जैसे हम पर्दें पर फिल्म देखते हैं। हम चुपचाप देख रहे हैं। हम कोई उसके साथ आइडेंटिटी नहीं कर रहे हैं अपने को, अपने को जोड़ नहीं रहे हैं। हम खड़े हैं, और हम देख रहे हैं। थोड़े दिन के अध्यास से यह भाव होना आसान हो जाएगा। अभी तो एकदम से दिक्कत होती है क्योंकि क्षण भर हम खडे़ रहेंगे, फिर हमको होश आएगा कि अरे, हम उसी में संलग्न हो गए। तो निरंतर इसका उपयोग करने से आधा घंटा रोज--कुछ ही दिनों में आधा घंटे में तो स्पष्ट रूप से आप जागरूक रह पाएंगे। और जब आधा घंटे में जागरूक रह पा सकते हैं तो फिर उसका विकसित प्रयोग भी है। धीरे-धीरे क्रियाओं में भी और तब क्रियाओं में भी जागरूकता आ जाए।

गांधी जी के पास शुरू-शुरू में विनोबा जी गए थे। विनोबा जी में अपनी एक बात है कि वह किसी भी काम को परिपूर्ण कुशलता से करते हैं--इनको हरेक बात में वैसा ध्यान रहता है। जो भी काम करना है उसकी पूरी कुशलता पानी है। जब उन्होंने चर्खा कातना शुरू किया तो उन्होंने इतनी अच्छी पोनी बनायी कि गांधी जी दंग रह गए। उन्होंने कहा कि इससे अच्छा पोनी बनाने वाला हमारे पास कोई आदमी नहीं है। फिर उन्होंने चर्खे में भी इतने सुधार किए कि गांधी जी दंग रह गए। फिर वह सूत भी इतना महीन कातने लगे कि गांधी जी ने कहा कि यह सूत कातने का आचार्य है। यह सब होने के बावजूद विनोबा जी ने गांधी से पूछा कि मैंने सबसे अच्छी व्यवस्था कर ली, चर्खा मेरा आपसे बेहतर हो गया है। मेरी पोनी आपसे अच्छी हो गयी है। मेरी कातने में कुशलता आ गयी है लेकिन मेरा अपना धागा टूट क्यों जाता है? और आपका धागा खराब पोनी में भी नहीं टूटता।

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