ई-पुस्तकें >> अमृत द्वार अमृत द्वारओशो
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ओशो की प्रेरणात्मक कहानियाँ
बुद्धि की असफलता बड़ा सौभाग्य है। बुद्धि असफल हो जाए, इससे बड़ी और कोई बात नहीं। एक अंतिम प्रश्न और है--ईश्वर और आत्मा में क्या संबंध है? क्या आत्मा ही परमात्मा है? मैं कोई उत्तर आपको इस संबंध में दू तो गलत होगा। क्योंकि मैंने कहा, आत्मा और परमात्मा के संबंध में बाहर से कोई कुछ भी नहीं दे सकता है। अगर मैं खुद ही कोई उत्तर दूं तो मैं अपनी ही बात की गलती में चला जाऊंगा। मैं आपको नहीं कहता कि आत्मा क्या है और परमात्मा क्या है? मैं आपको इतना ही कहता हूं कि कैसे उन्हें जाना जा सकता है। आत्मा क्या है, यह कहना बिलकुल संभव नहीं है। आज तक संभव नहीं हुआ है किसी व्यक्ति ने इस जगत में यह नहीं कहा कि आत्मा क्या है। जो जागे हैं उस सत्य के प्रति उन सबने यही बताया कि हम कैसे जागे हैं; क्या है, नहीं-- उस क्या है के प्रति हम कैसे जागे हैं? तो मैं आपको नहीं कहूंगा कि आत्मा क्या है। मैं तो यही कहूंगा कि कुछ है जो अभी अज्ञात है, और ज्ञात हो सकता है। और ज्ञात होने की विधि यह है कि उसके संबंध में अभी कोई विचार परिपक्व न करें, समस्त, विचार छोड़कर शून्य हों और देखें। और भी एक विचार आपको दे दूं, इससे कोई अर्थ न होगा। वह एक विचार और आपके मस्तिष्क में बैठ जाएगा। मैं तो कह रहा हूं, समस्त विचार छोड़ दें। तो मैं और एक एडीशन नहीं करूंगा। आत्मा के संबंध में सब विचार छोड़ दें, मौन हो जाए, आपको दिखेगा क्या है। और उसी में आपको यह भी दिखेगा कि वही आत्मा समस्त में व्याप्त है या नहीं है। वही आत्मा अगर समस्त में दिखायी पड़े तो अर्थ हुआ, परमात्मा है। जो एक के भीतर व्याप्त है, अगर वही चैतन्य, वैसा ही चैतन्य समग्र के भीतर व्याप्त है तो उस टोटल कांसेसनेस का नाम परमात्मा है। समस्त के भीतर जो व्यस्त चैतन्य है उसका नाम परमात्मा है। समस्त के भीतर व्यास जो जड़ है, उसका नाम प्रकृति है। और प्रत्येक व्यक्ति जड़ और प्रकृति, प्रकृति और परमात्मा का जोड़ है। प्रत्येक के भीतर शरीर है और प्रत्येक के भीतर अशरीरी चैतन्य है। मेरे लिए रास्ता है कि मैं शरीर के पार जो अशरीर चैतन्य है उसको अनुभव कर लूं। उसका अनुभव मुझे जगत सत्य का अनुभव दे देगा।
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