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अमृत द्वार

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :266
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9546
आईएसबीएन :9781613014509

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ओशो की प्रेरणात्मक कहानियाँ

जुग एक मनोवैज्ञानिक था। उसके पास एक आदमी लाया गया। वह एक दफ्तर में नौकर था और वह आदमी धीरे-धीरे पागल होता चला गया था। पागल कुल यह था कि जो उसका बस था वह उसे डांटना या अपमानित करता तो उसके मन में होता कि निकालूं जूता और इसको मार दूं। लेकिन बास को जूता कैसे मारा जा सकता है? वह अपने को रोक लेता था। लेकिन यह बात बढ़ती चली गयी, आब्सेशन हो गया। मालिक कुछ कहे, उसका हाथ जूते पर जाए और घबराकर अपने को रोक लेता। उसे यह डर पैदा हो गया कि किसी दिन मैं अगर निकाल के मार ही न दूं, नहीं तो मुश्किल हो जाएगी, तो उसने छुट्टी ले ली और वह घर पर बैठ गया। लेकिन घर बैठे गया तो उसका ही चिंतन चलने लगा उसे कि कहीं रास्ते पर वह मुझे मिल जाए और मैं जूता निकाल कर मार दूं।

जुग के पास उसे लाए। जुग ने कहा, यह ठीक हो जाएगा। मालिक का एक चित्र ले आओ और रोज इससे कहो कि दफ्तर जाने के पहले और दफ्तर से आने के बाद पांच जूते मालिक के चित्र को मारकर, तुम जाओ। लोगों ने कहा, यह क्या पागलपन है, इससे क्या होगा? लेकिन जुग ने कहा, तुम करो, रिलीजियसली तुम इसको करो। ऐसा नहीं, जब पूजा करता है आदमी रोज नियमित वक्त पर उसके जूते मारने में। वह आदमी भी हंसा। लेकिन उसे खुशी हुई। यह बात कुछ लगी, दिल में बहुत दिन से यह बात थी। उसने पांच जूते सुबह और पांच जूते शाम को मारकर यह दफ्तर जाना शुरू किया। और पहले जूते मार कर गया तो वह उस आदमी ने लौटकर कहा कि आज मुझे मालिक पर उतना क्रोध नहीं आया जितना मुझे रोज आता था। और पंद्रह दिन के भीतर वह आदमी दफ्तर में शांति से काम करने लगा। और मालिक ने खुद कहा, इस आदमी में क्या फर्क हो गया? यह आदमी बड़ा शांत मालूम पड़ रहा है। कोई फर्क नहीं हो गया, और महीने भर में वह आदमी नार्मल हो गया। एक साल भी चला गया और वह खुद हंसने लगा कि यह क्या पागलपन था कि मुझे जूता मारने का खयाल आता था।

हमने उस एक निकास दिया। हिंदुस्तान के युवक के पास शक्ति है। और शांति बिलकुल नहीं है। अशांत चित्त है और शक्ति पास है। अशांत चित्त और शक्ति पास होगी तो टूट-फूट होगी, विघटन होगा, आज्ञा हीनता होगी, सब तरह का उपद्रव पैदा होगा, शिक्षक और नेता और ये पुरोहित समझा रहे हैं युवकों को कि तुमको यह बुरा काम नहीं करना चाहिए कोई भी यह नहीं देख रहा है कि इसके भीतर साइकिक स्थिति ऐसी है कि आप इधर से रोकोगे उधर करेगा उधर से रोकोगे कहा करेगा। उसकी साइकिक स्थिति बदलने की जरूरत है।

पत्रकार-वार्ता,
बंबई,
दिनांक २१ सितबर १९६८

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