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अमृत द्वार

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :266
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9546
आईएसबीएन :9781613014509

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ओशो की प्रेरणात्मक कहानियाँ

और साहस तभी विकसित होता है जब हम बच्चों को साहस की ट्रेनिग से गुजारें। सैनिक शिक्षण का मतलब है कि उसे साहस की ट्रेनिंग से गुजारें। सैनिक शिक्षण का मतलब है कि उसे साहस की ट्रेनिंग से गुजारना चाहिए। छोटे से छोटे बच्चों को पहाड़ों पर ले जाना चाहिए, समुद्रों में तैरना चाहिए। दस पच्चीस हजार बच्चे हर साल मरेंगे, मर जाने देना है, इसकी फिकर छोड़ देनी है-- पूरी कौम के मरने की बजाय। जिस तरह से कल्टीवेट हो सके साहस, दुस्साहस कल्टीवेट हो सके, वह हमें सारी चेष्टा का कर पाएंगे। नहीं तो यह जो शिक्षक हमें समझा रहे हैं और नेता समझा रहे हैं कि मारल टीचिंग हो स्कूल में, झूठ बोलना पाप है-- यह तो हम पांच हजार साल से कर रहे हैं। इसमें कुछ-कुछ नहीं हुआ कि हिंसा परमोधर्म है, यह सब तो बहुत हो चुकी है बकवास, इससे कुछ हुआ नहीं। हमें यह पकड़ना पड़ेगा कि एक आदमी अनैतिक होता कब है? जब भी उसमें साहस की कमी पड़ती है और फियर पैदा होती है, तभी वह अनैतिक होता है। तभी बचाव के लिए एक ही रास्ता रह जाता है उसके पास कि वह झूठ बोल ले, बच जाए। बेईमानी कर ले, चोरी कर ले। हमें इतना साहसी बच्चा पैदा करना है जो कि जान हमेशा हथेली पर लिये रहे तो ही नैतिक आदमी पैदा होगा। क्योंकि पूरी सोसाइटी ही इममोरल है और मारल आदमी तभी पैदा हो सकता है जब पूरी सोसाइटी से लड़ने की हिम्मत उसके भीतर हो। हममें लड़ने की हिम्मत नहीं है। हमें लड़ने की हिम्मत पैदा करने की बड़ी जरूरत है। और वह कोई बच्चे में किससे लड़ने की हिम्मत हम पैदा कर सकते हैं, समुद्र से लड़ने की हिम्मत पैदा कर सकते हैं, पहाड़ पर जूझने की हिम्मत पैदा कर सकते हैं। उसे हम उस ट्रेनिंग से गुजार सकते हैं जहाँ उसे ऐसा लगने लगे कि वह जान हथेली पर लिए हुए है।

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