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अमृत द्वार

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :266
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9546
आईएसबीएन :9781613014509

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ओशो की प्रेरणात्मक कहानियाँ

इस मुल्क में भी, अगर हम माइंड को बदलने की फिकर नहीं करते हैं और पुरानी लकीरों को पीटते चले जाते हैं और चिल्लाए चले जा रहे हैं कि ठीक कह रहे हैं फलां, ठीक कह रहे हैं फलां, ठीक है, सब बिलकुल ठीक है, तो आप पक्का मानिए इस मुल्क के जीवन में कोई क्रांति, कोई परिवर्तन कोई नया आंदोलन नहीं हो सकता है। हमें माइंड पर चोट करनी पड़े, तो मैं जो फिकर करता हूं मुझे उसकी फिकर नहीं है कि सामाजिक क्रांति हो या न हो। मुझे फिकर यह है कि मन में बीज में पड़ जाए तो आने वाले बच्चे क्रांति कर लेंगे, आपको इसकी फिकर करने की जरूरत नहीं। लेकिन बीच में हमारे दिमाग में खयाल ही नहीं है। अभी हमारे दिमाग में यह खयाल नहीं है इस मुल्क के कि शोषण पाप है। यह खयाल नहीं है हमारे दिमाग में। अभी भी खयाल नहीं है कि शोषण पाप है हम कहें उसे, जैसे हम चोरी को काफी पाप कहते हैं। ऐसे हम संपदा को भी चोरी कहें और पाप कहें वह हमारे मन में नहीं है।

मार्क्स के भी पहले प्रूधो ने कहा कि संपत्ति चोरी है। उस एक सूत्र पर सारा का सारा समाजवाद विकसित हुआ। संपत्ति मात्र चोरी है। वेल्थ इज थेफ्ट। यह एक छोटा-सा सूत्र प्रूधो ने कहा। इस एक सूत्र पर पूरा कम्यूनिज्म विकसित हुआ। यह छोटा-सा सीड था। उसने यह कहा कि संपत्ति मात्र चोरी है क्योंकि बिना चोरी के संपत्ति इकट्ठा हो ही नहीं सकती। इस एक छोटे से सूत्र पर सारा का सारा कम्यूनिज्म खडा हो गया। रूस और चीन एक छोटे से सूत्र पर खड़े हुए और आने वाले तीस चालीस वर्षों से सारी दुनिया में फर्क आ जाएगा और सबके पीछे प्रूधो का एक छोटा-सा वचन है। और प्रूधो बिलकुल साधारण सा आदमी था। यह कभी पता नहीं चलता दुनिया में कि प्रूधो नाम का एक आदमी था, वह एक वचन बोल गया कि यह जो संपत्ति है, चोरी है। एक दफा यह खयाल आ जाए कि संपत्ति चोरी है तो फिर समाज हमें ऐसा बनाना पड़ेगा जिसमें चोरी जैसी बुनियादी चीज न चलती रहे। बड़े चोरों और छोटे चोरों का फर्क है। बड़े चोर संपत्तिशाली हैं, छोटे चोर जेलों में हैं, सजा काटते हैं। छोटा चोर फंस जाता है, बड़ा चोर मालिक है। और बड़ा चोर पुण्यात्मा है और छोटा चोर पापी है।

तो जब तक हमारे दिमाग में यह खयाल चलता रहेगा तब तक यह व्यवस्था नहीं बदलती है। तो मेरा आग्रह इतना ही है कि किसी भी भांति यह मन की जड़ता हिल जाए; इसके तंतु यहां-वहां उखड़ जाएं और एक बार हम फिर सोचने या विचार करने लगें कि हम फिर से कि सच, असलियत क्या है तो शायद कोई बीज निर्मित हो जाए। और कोई बात नहीं है।

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