ई-पुस्तकें >> अमृत द्वार अमृत द्वारओशो
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ओशो की प्रेरणात्मक कहानियाँ
उस फकीर ने कहा, बड़ा मुश्किल में डाल दिया तूने मुझे। अगर चोरी ही करने आना था तो पहले से खबर भेज देते। मैं कुछ इंतजाम कर रखता। यहाँ तो कुछ भी नहीं है। और तुम खाली हाथ लौटोगे तो जीवन भर के लिए मेरे मन में पीड़ा रह जाएगी। उसकी आँख में आँसू आ गए और उसने हाथ आकाश की तरफ उठाया और कहा, हे परमात्मा, यह दुःख भी देखने को बचा था, इसका मुझे खयाल न था। एक आदमी आधी रात को आएगा। बहुत मुसीबत में होगा, तभी तो? अंधेरी रात में कौन निकलता है? और वह भी एक फकीर के झोपड़े पर चोरी करने आएगा। और मेरे पास कुछ भी नहीं है। तभी उस खयाल आया कि सुबह दो दिन पहले कोई दस रुपए भेंट कर गया था और वे आले में पड़े हैं। फिर उसने कहा, ठीक है, बहुत ज्यादा तो नहीं लेकिन कोई दो दिन पहले कुछ रुपए भेंट कर गया था और वे दस रुपए आले में पडे हैं। अगर वे बहुत कम मालूम न पड़ें तो मेरे मित्र तुम उन्हें उठा लो। और अब दुबारा जब भी आओ मुझे पहले से खबर कर देना, मैं कुछ इंतजाम करके रखूंगा। और ऐसी अंधेरी रातों में मत आया करो। भरे उजाले में दिन में आ जाओ। रास्ते खराब हैं, चोट खा सकते हो। भटक सकते हो, पत्थर पडे हैं मार्ग पर और यह ऊबड- खाबड जगह है जहाँ मैं रहता हूँ यह झोपड़ा गरीब फकीर का गाँव के बाहर है। दिन में आ गए। उजाले में आ गए। चोट लग जाए, गिर पडो, हाथ-पैर टूट जाएँ कुछ हो जाए तो फिर मुसीबत हो सकती है।
वह चोर तो बहुत हैरान हो गया। उसे कल्पना भी न थी कि चोर के साथ कोई ऐसा व्यवहार करेगा। उसे उठते न देखकर वह फकीर उठा और दस रुपए उठाकर उसे आले में से दे दिए और कहा, ये दस रुपए हैं। अगर तुम नाराज न हो तो एक रुपया इसमें से छोड़ दो, मैं बाद में वापस लौटा दूंगा। कल सुबह ही सुबह शायद मुझे जरूरत पड़ जाए। मैं वापस लौटा दूंगा, यह उधारी रही मेरे ऊपर, वह चोर कहने लगा, इसमें उधारी की क्या बात है? सब आपका है। उस फकीर ने कहा, अगर मेरा ही कुछ होता तो मैं फकीर ही क्यों होता। मेरा कुछ नहीं है इसलिए तो मैं फकीर हो गया। अब उधार है, सब चोरी है। जो भी जिसके पास है वह उधार है। और जो भी जिसके पास है, सब चोरी है। सब संपत्ति चोरी है क्योंकि कोई आदमी कुछ भी लेकर नहीं आता और कोई आदमी कुछ भी लेकर नहीं जाता मेरा कुछ भी नहीं है। कल सुबह जरूरत पड़ जाएगी, इसलिए रोक रखता हूँ। फिर वापस लौटा दूंगा।
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