लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> अमृत द्वार

अमृत द्वार

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :266
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9546
आईएसबीएन :9781613014509

Like this Hindi book 10 पाठकों को प्रिय

353 पाठक हैं

ओशो की प्रेरणात्मक कहानियाँ

कुछ लोग पहले लड़के की तरह हैं जिन्होंने जिंदगी के बीज को तिजोडियों में बंद कर रखा है। जिंदगी सड़ जाती है और बदबू निकलती है। कुछ लोग दूसरे लड़के जैसे हैं। जो जिंदगी को बाजार में बेच रहे हैं-- न मालूम कितने-कितने रूपों में। और जिस दिन मौत सामने आएगी वह कहेंगे, हमने जिंदगी बेंच दी। किसी ने धन में बेच दी, किसी ने यश में बेच दी। वे कहेंगे अपन पिता के सामने कि यह धन है, हमने जिंदगी बेच दी। ये तिजोडियां हैं, यह देखो। यह देखो हमारे पद। यह देखो कि मैं मंत्री था, मैं महामंत्री था,  मैं प्रधान मंत्री था फलां मुल्क का। हमने जिंदगी बेच दी है और यह पद और धन खरीद लिया है। यह सर्टिफिकेट देखो, यह प्रमाण पत्र देखो। यह पदमश्री, राज्यश्री की उपाधियां देखो। हमने बेच दी जिंदगी और यह खरीदकर ले आए। लेकिन उस बाप ने कहा जो कि मैंने सम्हालने को दिया था वह बेचने को नहीं दिया था। और बेचना होता तो खुद बेच देता, तुझे सम्हाल कर देने की जरूरत क्या थी? बीज कहां हैं जो मैंने दिए थे। उसके हाथ में नोटों के रुपए हैं। कागज के रुपए हैं। अब कहां बीज जो फूल बन सकते थे, कहां कागज के नोट जो कुछ भी नहीं बन सकते।

वह तीसरे लड़के के पास पहुँचा कि बीज कहां हैं मेरे? उसने कहा, बाहर आ जाएं। बीज तिजोरियों में बद नहीं किये जा सकते और न नोटों में बंद किए जा सकते। वह खेतों में फैल गए हैं। बाहर आ गए। मीलों बीजों के फूल गए हैं। फूल हवा में लहरा रहे हैं सूरज की रोशनी में। तितलियां उन पर उड़ रही हैं और पक्षी गीत गा रहे हैं। और बाप ने कहा, तू अकेला मालिक होने के योग्य है।

परमात्मा भी सबको बीज देता है, जीवन भी। लेकिन कुछ लोग पहले लड़के की तरह हैं, कुछ लोग दूसरे लड़के की तरह। और बहुत थोड़े लोग तीसरे लड़के की तरह बीजों के साथ व्यवहार करते हैं। मैं आपसे प्रार्थना करता हूं, तीसरे लड़के पर ध्यान रखना। कहीं आप पहले दो लड़कों के जैसे सिद्ध न हों। वह तीसरे लड़के अगर आप हो जाएं तो आपके जीवन की बगिया में भी इतने ही फूल, इतनी ही सुगंध इतने ही गीत गाते पक्षी निश्चित ही पैदा हो सकते हैं। परमात्मा करे आपका जीवन फूलों की एक बगिया बने।

वह कैसे बन सकता है, थोड़ी-सी बात मैंने आपसे कही। आपने मेरी बातों को इतने प्रेम और शांति से सुना, उसके लिए बहुत-बहुत अनुगहीत हूं। और अंत में सबके भीतर बैठे परमात्मा को प्रणाम करता हूं, मेरे प्रणाम स्वीकार करें।

बिड़ला क्रीडा केंद्र
बंबई
दिनांक ७ मई, १९६७ सुबह

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book