ई-पुस्तकें >> अमृत द्वार अमृत द्वारओशो
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ओशो की प्रेरणात्मक कहानियाँ
लेकिन हम तो अपने को नहीं जानते, विराट जीवन को कैसे जान सकेंगे? और जब हम अपने को नहीं जानते तो हम और क्या जान सकेंगे। जब हम अपने से भी अज्ञान हैं, अपने से भी अजनबी स्ट्रेंजर हैं तो हम और किससे परिचित हो सकेंगे? यह सारा जीवन हमारा अपरिचित छूट जाता है क्योंकि हम अपने से ही अपरिचित हैं, और जो विराट संपदा मिल सकती थी, सौंदर्य की, सत्य की, आनंद की, उस सबसे हम वंचित रह जाते हैं। यह वंचित रह जाने के लिए और कोई जिम्मेवार नहीं है। अगर मैं वंचित रह जाता हूं तो मैं ही जिम्मेवार हूं। यह दोष किसी और पर नहीं दिया जा सकता। यह कहना फिजूल है कि आदमी एक व्यर्थ वासना है। अगर आदमी व्यर्थ वासना है तो यह उस आदमी की भूल है। यह मैं आपसे कहना चाहता हूं, आदमी एक सार्थक उपलब्धि है। आदमी एक सार्थक अनुभूति है। आदमी का जीवन अपरिसीम अमृत को अपने भीतर छिपाए हुए है।
जैसे एक वीणा पड़ी हो किसी घर में और कोई बजाना न जानता हो और घर के लोग कहते हों, फेंको इस सामान को, यहां घर में फिजूल जगह घेरे हुए हैं। ठीक हमारे पास जीवन की वीणा पड़ी है, लेकिन हम उसके तारों से परिचित नहीं है, हमें उसके राज मालूम नहीं हैं। हमें उसका बजाना पता नहीं हैं तो घर में एक बोझ मालूम होता है। कई बार सोचते हैं, फेंक दो इसे। कई बार चूहे कूद जाते हैं, बच्चे कूद जाते हैं। वीणा में खन-खन की आवाज हो जाती हैं। घर में डिस्टर्बेंस मालूम होता है, नींद टूट जाती है। हम कहते हैं हटाओ इसको व्यर्थ का सामान घर में पड़ा है, शोर-गुल होता है। लेकिन कभी कोई वीणा को बजाने वाला कुशल वहां आ जाए और वीणा पर हाथ रख दे तो सोए तार जाग उठेंगे। निष्प्राण तारों में प्राण पैदा हो जाएगा। घर एक संगीत से गूंज उठेगा। हम कल्पना भी कर सकते थे कि इन तारों में इतना कुछ छिपा है।
घर में बीज पड़े हों, कंकड़ पत्थरों जैसे मालूम होते हों बीज। सोचते हैं, फेंक दें इन्हें, क्या अर्थ है, क्या प्रयोजन है? लेकिन हमें पता नहीं, इन बीजों में वृक्ष छिपे हैं। हमें पता नहीं, इन बीजों में फूल छिपे हैं। हमें पता नहीं, इन बीजों में सुगंध छिपी है। काश, कोई माली आ जाए और उन बीजों को बो दे बगिया में, तो हम हैरान रह जाएंगे कि हमने कई बार सोचा था कि फेंक दें इन बीजों को। हमें पता भी नहीं था कि इन ठोस कंकड़ जैसे दिखते बीजों में इतने रहस्य छिपे होंगे, इतने सुनहले फूल उठेंगे, इतनी सुगंध बसेगी, हमें कभी कल्पना भी न थी।
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