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अमृत द्वार

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :266
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9546
आईएसबीएन :9781613014509

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ओशो की प्रेरणात्मक कहानियाँ

हमारी स्थिति वैसी ही है जैसी कोई आदमी यात्रा पर निकला हो, और उसे यह भी पता न हो कि मैं कहां जा रहा हूं। वह ट्रेन में बैठ गया हो और उसे यह भी पता न हो कि मुझे किस स्टेशन पर पहुँच जाना है। वह पच्चीस तरह से अपने को भुलाने की कोशिश करता हो, अखबार पढ़ता हो, रेडियो खोलता हो, पड़ोस में बात करता हो, लेकिन थोड़ी बहुत देर से फिर उसे यह खयाल आ जाता है कि मैं जा कहाँ रहा हूं। यह ट्रेन मुझे कहाँ ले जाएगी? मुझे किस स्टेशन पर उतर जाना है? वह प्रश्न उसका पीछा करेगा, करेगा। स्वाभाविक है कि पीछा करे। जिस यात्री को यात्रा के लक्ष्य का ही कोई पता न हो--और हम तो ऐसे यात्री हैं जिन्हें यात्रा के लक्ष्य का कुछ पता नहीं, जिन्हें यह भी पता नहीं कि यात्री कौन है? मैं कौन हूं? हम न केवल यह नहीं जानते हैं कि हमें कहाँ पहुँचना है, न केवल हम यह नहीं जानते हैं, हमें कहाँ उतरना है। न हम यह जानते हैं, हमें किस दिशा में यात्रा करनी है। हमें यह भी पता नहीं है कि मैं कौन हूं जो यात्रा करने वाला हूं।

तो यदि मनुष्य मालूम पड़ता हो, भयातुर, घबडाया हुआ तो आश्वर्य है? स्वाभाविक है। जब तक मनुष्य जीवन के इस प्राथमिक प्रश्न का उत्तर न खोज लें तब तक उसके जीवन में आनंद की कोई वर्षा नहीं हो सकती है। न वह आत्मविश्वस्त हो सकता है न वह निन्दित हो सकता, न उसके तनाव समाप्त हो सकते, न उसकी अशांति समाप्त हो सकती, न उसकी पीड़ा बंद हो सकती, न उसे दुख से छुटकारा हो सकता। फिर वह कितने उपाय करता रहे, वे सब उपाय अपने वास्तविक प्रश्न और जीवन की वास्तविक समस्या को भुलाने के उपाय हैं। भुलाने से कोई बात भूलती नहीं। जितना हम भुलाने की कोशिश करते हैं वह उतनी ही प्रबल होकर सामने खड़ी हो जाती है। आदमी के जन्म से लेकर मृत्यु तक यह प्रश्न पीछा करता है, मैं कौन हूं और किसलिए हूं।

और अगर इसका कोई पता नहीं चलेगा तो फिर शास्त्र ने जैसा कहा है, मैंन इज ए यूजलेस पैशन। शास्त्र कहता है, आदमी एक व्यर्थ वासना है जिसमें कोई अर्थ नहीं। तो फिर अंत में यही दिखायी पड़ेगा कि आदमी एक व्यर्थ की दौड़-धूप है, एक अर्थहीन कथा जिसका न कोई प्रारंभ, न कोई अंत, न जिसका कोई उद्देश्य। तो ऐसे व्यर्थ जीवन में शांति हो सकती है? ऐसे मीनिंगलेस एक्जिस्टेंस में, ऐसे अर्थहीन अस्तित्व में प्राण निश्चित हो सकते हैं? इतनी व्यर्थता के बीच प्रेम का जन्म हो सकता है? इतनी व्यर्थता के बीच, कोई सत्य, कोई शिव, किसी सुंदर का अवतरण हो सकता है? इसलिए इसी संबंध में थोड़ी बात मुझे आपसे कहनी है।

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