ई-पुस्तकें >> अमृत द्वार अमृत द्वारओशो
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ओशो की प्रेरणात्मक कहानियाँ
एक छोटी-सी घटना-- और अपनी चर्चा मैं पूरी करना चाहूँगा। एक सांझ की बात है। आकाश में बादल घिर गए हैं, वर्षा के दिन आने के करीब हैं, एकाध दिन और, और वर्षा होगी। उमड़-घुमड़ कर बादल आने शुरू हो गए हैं। दो भिक्षु, दो सन्यासी भागे हुए जा रहे हैं एक रास्ते पर, अपने झोपड़े की तरफ। वर्षा आ रही है, अब वे चार महीने अपने झोपड़े में रहेंगे। आठ महीने वे घूमते रहते हैं, भटकते रहते हैं, रोटी मांगते रहते हैं और जीवन बांटते रहते हैं। दो कौड़ी की चीज लोगों से ले लेते हैं, शरीर को चलाते हैं और अमृत लुटाते रहते हैं। आठ महीने भागते रहते हैं गांव-गांव, रास्तों-रास्तों, कि किसी के रास्ते पर एक दिया जल जाए, कि किसी रास्ते पर फूल रख आए। फिर आठ महीने भागने के बाद चार महीने वर्षा में अपने झोपडे पर वापस लौट आते हैं।
वे भागे चले जा रहे हैं। झोपड़ा उन्हें दिखायी पड़ने लगा है। नदी के उस पार, पहाड़ के पास उनका झोपड़ा है, लेकिन जैसे-जैसे वे निकट आते हैं, देखकर कुछ हैरान हुए जा रहे हैं। जवान भिक्षु है एक, एक बूढ़ा भिक्षु है। जवान भिक्षु आगे है थोड़ा, बूढ़ा पीछे है। फिर वह जवान भिक्षु देख पाता है, कि झोपड़ा तो टूटा पड़ा है, आधा झोपड़ा हवाओं में उड़ गया मालूम होता है। आधा छप्पर जमीन के पास पड़ा हुआ है। गरीब का झोपड़ा है, उसमें बडी लागत तो नहीं होती है। वह तो हवाओं की कृपा से बना रहता है, नहीं तो हवाएं कभी भी उसको गिरा देती। उसको कोई बल तो नहीं होता, उसका कोई अधिकार तो नहीं होता कि वह बना ही रहेगा। वह तो बना रहता है, यह चमत्कार है। जो गरीब का झोपडा है उसके बने रहने की कोई वजह नहीं है, कोई कारण नहीं है। हवाओं की कृपा समझें कि बना रहता है।
वह तो क्रोस से भर गया है भिक्षु, उसने लौटकर अपने बूढ़े भिक्षु को कहा कि देखते हैं? जिस भगवान के गीत गाते फिरते हैं हम, जिस भगवान के लिए सांसें लेते हैं, जिस भगवान के लिए जीते हैं वह भगवान इतनी भी फिकर नहीं कर सकता है कि हमारा झोपड़ा बचा ले। ऐसी ही बातों से तो अविश्वास पैदा हो जाता है। ऐसी बातों से लगता है कि नहीं हैं कोई भगवान। सब झूठी है बकवास। गाँव में पापियों के महल खडे हैं, उनमें से किसी का छप्पर नहीं गिर गया और कोई मकान नहीं टूट गया। और हम भिखारियों के मकान को तोड़ दिया तुम्हारे भगवान ने। अब रखो तुम अपने भगवान को, मुझे छुट्टी दो। बहुत हो गयी यह बकवास। भगवान-वगवान कुछ भी नहीं है। अब वर्षा में क्या होगा? वर्षा सिर पर है, बादल आकाश में घिरे हैं, घुमड़ते हैं, बिजली चमकती है। क्या होगा, अब कहाँ ठहरोगे? वह इतने क्रोध में हैं, कि देख भी नहीं पाया कि जब वह चिल्ला रहा है तब बूढ़ा भिक्षु क्या कर रहा है।
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