लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> अमृत द्वार

अमृत द्वार

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :266
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9546
आईएसबीएन :9781613014509

Like this Hindi book 10 पाठकों को प्रिय

353 पाठक हैं

ओशो की प्रेरणात्मक कहानियाँ

स्मृति ज्ञेय के और ज्ञाता के बीच में हमेशा खड़ी है। इसलिए हम ज्ञेय को भी नहीं जान पाते। और स्मृति का जो संकलन है उसी को हम ज्ञाता समझ लेते हैं तो भ्रम होता है। ज्ञेय को हम नहीं जान पाते हैं, स्मृति बीच में आ जाती है। और स्मृति का जो संकलन, एकुलमेशन है मेमोरी का, हम समझ लेते हैं, यही मैं जानने वाला हूं। जैसे अगर कोई आपसे पूछे, आप कौन हैं? तो आप क्या बताइएगा? आप कुछ स्मृतियां बताइएगा। मैं फलां का लड़का हूं, यह एक स्मृति है। तीस साल मैंने यह अनुभव लिए, उनमें से कुछ बताएंगे, यहां पढ़ा हूं, यहां नौकरी करता हूं, यहां यह हूं, यहां वह हूं। यह सारी आपकी मेमोरी है बीस वर्ष की। इनका एकुमिलेशन आप हैं। इसलिए कभी-कभी यह होता है कि किसी चोट से अगर स्मृति विलीन हो जाती है और उससे पूछिए कि आप क्या हैं तो वह खड़ा रह जाता है। उसको याद ही नहीं पड़ता कि कोई स्मृति हो। थोड़ी दूर आप कल्पना करिए कि आपकी स्मृति पोंछ दी जाए तो आपसे फिर पूछा जाए कि आप क्या है तो आप खडे़ रह जाएंगे। आपको कुछ उत्तर नहीं सूझेगा कि मैं क्या कहूं। क्योंकि आप जो भी उत्तर देते हैं, वह स्मृति से है। स्मृति का जो संग्रह है, उसी को हम समझ लेते हैं, मैं हूं स्मृति ज्ञेय को भी नहीं जानने देती। स्मृति का संग्रह ज्ञाता को भी नहीं जानने देगा। स्मृति के पीछे ज्ञाता छिपा हुआ है और स्मृति के आगे ज्ञेय बैठा हुआ है। बीच में स्मृति की धारा है। उस तरफ ज्ञेय है, इस तरफ ज्ञाता है, बीच में मेमोरी है। मेमोरी न ज्ञेय को जानने देती है न ज्ञाता को जानने देती है। अगर मेमोरी का, स्मृति का विसर्जन हो जाए तो मैं ज्ञेय को पहली दफा देखूंगा। और पहली दफा इंस्टीटीनियस--अलग-अलग घटना नहीं घटेगी यह क्योंकि ज्ञाता और ज्ञेय साथ ही जाने जाएंगे। जिस क्षण मैं ज्ञेय को देखूंगा उसी क्षण ज्ञाता को भी। ये अलग नहीं जाने जाएंगे। दोनों एक साथ, दोनों एक साथ अनुभव होंगे। और वह साथ होना इतना गहरा होगा कि मुझे नहीं मालूम होगा कि ज्ञेय अलग, आता ज्ञाता अलग। मुझे असल में ज्ञान का अनुभव होगा। मुझे कांसेसनेस का अनुभव होगा। अगर मेमोरी विसर्जित हो जाए तो केवल ज्ञान का अनुभव होगा। जब हम कहते हैं, महावीर ने, या किन्हीं और ने अपने समस्त पुराने कर्मों से अपना छुटकारा पा लिया तो मैं पाता हूं, कर्म असल में सिवाय स्मृति के और कुछ भी नहीं है। कर्मबंध का अर्थ स्मृतिबंध है। कर्मबंध का अर्थ है मेमोरी। वह जो हम कहते हैं कर्म चिपक जाते हैं, कर्म नहीं चिपकता है, केवल स्मृति चिपक जाती है। किए हुए की स्मृति चिपक जाती है। किए हुए का संस्कार चिपक जाता है। जिसको महावीर निर्जरा कह रहे हैं, असल में डी-मेमोराइड है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book