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अमृत द्वार
अमृत द्वार
प्रकाशक :
भारतीय साहित्य संग्रह |
प्रकाशित वर्ष : 2016 |
पृष्ठ :266
मुखपृष्ठ :
ईपुस्तक
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पुस्तक क्रमांक : 9546
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आईएसबीएन :9781613014509 |
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353 पाठक हैं
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ओशो की प्रेरणात्मक कहानियाँ
पिकासो का नाम सुना होगा। एक अदभुत चित्रकार है। एक पेंटर अमरीकी करोड़पति ने अपना एक चित्र बनवाया पिकासो से। करोड़पति था। उसने यह उचित न समझा कि दाम पहले तय कर ले। कितना मांगेगा ज्यादा से ज्यादा? फिर उसके पास पैसे की कोई कमी भी न थी। पिकासो ने भी दाम तय करने की बात कोई ठीक न समझी। चित्र दो साल में बना। वह करोड़पति बार-बार पुछवाता रहा कि चित्र बन गया कि नहीं। पिकासो ने कहा थोड़ा धैर्य रखिए एकदम आसान बात नहीं है। भगवान भी आपको बनाता है तो नौ महीने लग जाते हैं। लेकिन मैं तो भगवान नहीं हूँ, मैं तो एक साधारण मनुष्य हूँ, मैं बना रहा हूँ आपको फिर से दुबारा। दो चार वर्ष लग जाएं तो कोई कठिन नहीं है। बड़ा हैरान था वह करोड़पति कि क्या पागलपन की बातें कर रहा है। मेरा चित्र बना रहा है तो क्या दो-चार वर्ष लगाएगा फिर? दो वर्ष बाद उसने खबर भेजी कि चित्र बन गया, आप आ जाएं और चित्र ले जाएं। वह करोड़पति लेने आया। चित्र सुंदर बना था, उसे बहुत पसंद पड़ा। उसने पूछा, इसके दाम? पिकासो ने कहा, पांच हजार उसने कहा, क्या? पांच हजार डालर। थोडा सा कैनवास और थोड़े से रंग, इसका दाम पांच हजार डालर? क्या मजाक करते हैं? इस कैनवास के टुकड़े को और इन रंगों की इतनी कीमत? दस पांच रुपए में बाजार से मिल जाएगा यह सब सामान। उसने एनालिसिस कर दी। उसने विश्लेषण कर दिया कि इतनी-इतनी चीजों से मिलकर बना है। इसका दाम पांच हजार डालर। यह कोई बात है।
पिकासो ने अपने सहयोगी को कहा कि जा भीतर, इससे बड़ा कैनवास का टुकड़ा ले आ और रंग की पूरी की पूरी टयूब ले आ और इनको दे दे। और जितने दाम ये देते हों दे जाएं।
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