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अमृत द्वार

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :266
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9546
आईएसबीएन :9781613014509

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ओशो की प्रेरणात्मक कहानियाँ

यह तप का, कष्ट का और पीड़ा का और सहने का ये सारे शब्द गलत हैं। मनुष्य को जो आनंदपूर्ण है उसके अनुसार व्यवहार करता है। हमको जो आनंदपूर्ण है हम उसको मानकर व्यवहार करते हैं। उनको जो आनंदपूर्ण है उसको मानकर व्यवहार करते हैं। और दोनों के आनंद के दृष्टि में जमीन आसमान का अंतर है। इसलिए जो हमको तप है, वह उनको आनंद है। और जो हमारे लिए आनंद है, उनके लिए अज्ञान है। वह हम पर दया से भरे हुए हैं कि हम मूर्ख हैं, हम किन चीजों में अपने समय को खो रहे हैं। और हम उनके ऊपर श्रद्धा से भरे हुए हैं कि कितने महान हैं कि बड़ा त्याग कर रहे हैं।

प्रश्न-- वह तो समझता है कि मैं तपश्चर्या कर रहा हूं, बड़ा अच्छा कर रहा हूं।

उत्तर-- वह भी अगर थोड़ी सी समझ का उपयोग करे तो उसे दिखायी पडे़गा कि तपश्चर्या से अहंकार मजबूत हो रहा है या ज्ञान उत्पन्न हो रहा है। इसमें देर न लगेगी। और उसके समस्त व्यवहार में वह दिख जाएगा। साधु जितने अहंकारी हैं इस जगत में--मुश्किल से एकाध प्रतिशत को छोड़कर जो वस्तुतः साधु हैं--उतना दूसरा आदमी नहीं मिलेगा। वह आसपास के लोगों को भी दिखता है, उनको भी दिखता है कि वह मौजूद है। लेकिन पच्चीस व्याख्याएं करके उनको समझाएंगे।

मैं अभी इलाहाबाद में एक बड़ा यज्ञ था, वहाँ गया। वहाँ उन्होंने संप्रदायों के साधुओं को बुलाया हुआ था। उन्होंने इतना बड़ा मंच बनाया था कि उस पर सौ साधु इकट्ठे बैठ सकें। उन्होंने लाख चेष्टा की, हाथ पैर जोडे़ कि सारे साधु एक दफा बैठ जाएं मंच पर। दो साधु एक साथ बैठने को राजी नहीं हुए। क्योंकि कोई किसी से नीचे नहीं बैठ सकता था। दो शंकराचार्य मौजूद थे लेकिन दोनों बैठने को राजी नहीं हुए क्योंकि दोनों का सिंहासन एक दूसरे से ऊंचा होना चाहिए। आखिर उस सौ आदमियों के मंच पर सौ बोलने के मंच पर एक- एक आदमी को भाषण करवाना पड़ा। बाकी लोग सुन भी नहीं सके बैठकर। वह अपने शिविर में-- बोला आदमी, अपने शिविर चला गया। दूसरा साधु बोला, उसे उसके शिविर में पहुँचा दिया। कोई दो साधु मंच पर इकट्ठे होकर नहीं बैठते हैं। हैरानी होगी कि मामला क्या है? अभी पूरे मुल्क में यह दिक्कत है। दो साधु मिल जाएं तो कौन किसको पहले नमस्कार करे, यह दिक्कत है। इसलिए दो साधु मिलना नहीं चाहते कि पहले कौन किसको नमस्कार करे? दो साधु इसलिए नहीं मिलना चाहते कि कौन किससे मिल जाए? आप उनसे मिलने गए थे या वह आपसे मिलने आए थे, यह बड़ा महत्वपूर्ण है।

हमें दिखता नहीं, अन्यथा जो तथाकथित साधु हैं, इस तरह वे कामों में लगा हुआ, वह इतने दंभ का पोषण करता है कि उसका कोई हिसाब नहीं है।

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