ई-पुस्तकें >> अमृत द्वार अमृत द्वारओशो
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ओशो की प्रेरणात्मक कहानियाँ
बुद्ध के जीवन में एक उल्लेख है, शायद पिछली बार उसकी चर्चा किया था। वह एक जंगल से गुजरते थे। उनका एक भिक्षु आनंद उनके साथ था। वह एक वृक्ष के नीचे रुक गए। उन्हें प्यास लगी और उन्होंने आनंद को कहा कि जाकर पास से पानी ले आ। तो आनंद बोला कि यह मार्ग मेरा परिचित है। आगे एक छोटा सा पहाड़ी नाला है फलांग दो फलांग पर, उस पर से पानी ले आऊं? और या फिर पीछे तीन मील लौटने से नदी है, जहाँ से हम होकर आए हैं, उससे पानी ले आऊं। बुद्ध ने कहा, उस नाले से ही पानी ले आ। वह नाले पर गया, लेकिन जब वह नाले पर पहुँचा तो उसके आगे ही पाँच-सात बैलगाडियाँ उस नाले से निकल गयी हैं। वह एकदम गंदा और कचरे से भर गया है और सारे पत्ते दबे हुए, सड़े हुए ऊपर फैल गए हैं। छोटा सा नाला था, वह पानी पीने योग्य नहीं है, ऐसा मानकर वह वापस लौट आया। फिर बुद्ध से कहा कि वह पानी तो पीने योग्य नहीं है, मैं वापस पीछे जाता हूं। बुद्ध ने कहा, इस दोपहरी में पीछे मत जाओ तुम उसी पानी को ले आओ। बुद्ध की बात भी टाल नहीं सका, फिर वहीं गया लेकिन उसका फिर वहाँ साहस नहीं हुआ कि इस पानी को मैं कैसे ले जाऊं और उनके लिए पीने को पानी कैसे दूं? फिर वापस लौटा। मुश्किल यह थी, बीच में वह उसी रास्ते में था, वह रुके थे। वह फिर वापस लौटा, उसने कहा, क्षमा करें, पानी लाने का साहस मेरा नहीं है।
बुद्ध ने कहा, तू मान उसी पानी को ले आ। वह बड़ी अड़चन में पड़ गया। वह जानता था, फिर उसे वापस लौटने का बहुत आग्रह किया। बुद्ध ने कहा, लाना हो तो उसी को ला, अन्यथा मत ला। उसे मजबूर होकर वहीं जाना पड़ा। वहाँ जाकर वह देखकर हैरान हुआ। वह तो पत्ते बह गए थे और कचरा नीचे बैठ गया था वह पानी को भर लाया, वह बड़ा हैरान हुआ। उसने जाकर बुद्ध को कहा कि बड़ा अदभुत अनुभव हुआ। वह पत्ते तो सब बह गए, कचरा नीचे बैठ गया, पानी तो बिलकुल निर्मल हो गया। बुद्ध ने कहा, मन को शांत करने का सूत्र भी यही है। तुम किनारे बैठ जाओ और जो विचार बहते हों बहने दो। जो विचार बैठ जाए बैठ जाने दो। तुम बिलकुल किनारे बैठे रहो, तुम छेड़छाड़ मत करो। और अगर तुम किनारे बैठे देख सकते हो तो तुम थोड़ी देर में पाओगे कि सब पत्ते बह गए और सब कचरा नीचे बैठ गया और अगर तुम कूद पड़े धारा में उसको शांत करने के लिए, फिर वह शांत होने को नहीं और दबे पत्ते उघड़ आएंगे, शांत होना मुश्किल हो जाएगा।
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