ई-पुस्तकें >> अमृत द्वार अमृत द्वारओशो
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ओशो की प्रेरणात्मक कहानियाँ
प्रश्न-- कार्य में भी तल्लीन नहीं होना है।
उत्तर-- अगर आप ठीक से समझियेगा, किसी कार्य में अगर आप पूरे तल्लीन हैं, पूरे तल्लीन हैं-- तल्लीनता बिलकुल दूसरी बात है और जागरूकता बिलकुल दूसरी बात है। अगर किसी कार्य में आप पूरे तल्लीन हैं तो आप शेष जगत के प्रति एकदम मूर्छित हो जाएंगे।
एक आदमी के मकान में आग लग गयी है और वह भागा चला जा रहा है कोई उसको रास्ते में नमस्कार करता है, उसे दिखायी नहीं पड़ता है, उसको सुनायी नहीं पड़ता है। असल में वह एक बात में तल्लीन है कि उसके मकान में आग लग गयी है, वह भागा जा रहा है। अभी उसका चित्त सब जगह अनुपस्थित है, वही उपस्थित है और जागरूकता बिलकुल दूसरी चीज है। जागरूकता में चित्त सब जगह समान रूपेण उपस्थित है चित्त किसी एक केंद्र पर जागकर सब पर नहीं खो गया है चित्त केवल जाग रहा है, चाहे कोई भी केंद्र हो।
तल्लीनता का हम इसलिए मूल्य मानते हैं जीवन में कि हमारी गैर तल्लीनता कार्य में अकुशलता बन जाती है। जैसे एक आदमी कोई काम कर रहा है और चित्त उसका और कहीं लगा हुआ है। इसको हम कहते हैं, यह तल्लीन नहीं है। असल में यह और कहीं तल्लीन है। अगर हम ठीक से समझें, इसको यह नहीं कहना चाहिए कि तल्लीन नहीं है, असल में यह अन्य किसी जगह पर तल्लीन है। तल्लीन तो यह है, यहाँ तल्लीन नहीं है। इसलिए हम कहते हैं, काम में तल्लीन हो जाओ। तो एक तो यह आदमी है कि काम कुछ कर रहा है और कहीं तल्लीन और है। दूसरा आदमी वह है कि वहाँ वह काम कर रहा है वहीं तल्लीन है। वह और शेष जगह अनुपस्थित है। और तीसरा आदमी वह है जो केवल जागरूक है और काम कर रहा है। वह तल्लीन कहीं भी नहीं है।
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