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अमृत द्वार

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :266
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9546
आईएसबीएन :9781613014509

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ओशो की प्रेरणात्मक कहानियाँ

यह ड्राइवर धर्म गुरु हो सकता था। उसने जल प्रपात को पूर्णिमा की रात को सौंदर्य को तोड़कर एनालिसिस करके दो टुकड़ों में रख दिया कि वहाँ पत्थर पड़े हैं और कुछ पानी गिरता है। वहाँ कुछ भी नहीं है। एक कवि देखता है फूल में न मालूम किस सौंदर्य की प्रतिमा को। एक कवि देखता है फूल में न मालूम किस अनुभूति को, न मालूम कौन से द्वार खुल जाते हैं, न मालूम किस अज्ञात लोक में वह प्रविष्ट हो जाता है। और जाकर पूछें किसी वनस्पति शास्त्री को, वह कहेगा, क्या रखा है उस फूल में? कुछ थोड़े से केमिकल्स, कुछ थोड़े से रसायन, कुछ थोड़ा-सा खनिज। और कुछ भी नहीं हैं उस फूल में क्यों पागल हुए जाते हो? किसकी कविता लिखते हो एक छोटे से केमिस्ट्री के फार्मूले में सब जाहिर हो जाता कि फूल में क्या है। फूल में कुछ भी नहीं है। उसने एनासिलिस कर दी, उसने तोड़कर बता दिया कि फूल में इतने-इतने रसायन हैं, इतना-इतना खनिज है, इतनी-इतनी चीजें गीली हैं, और फूल में कुछ भी नहीं है।

मैं किसी को प्रेम करूं और पहुँच जाऊं किसी शरीरशास्त्री के पास। वह कहेगा, क्या रखा है इस शरीर में? इसमें कुछ भी नहीं है, कुछ हड्डियां हैं, कुछ मांस है कुछ मज्जा है, कुछ खून है, और कुछ भी नहीं है। पहुँच जाऊं किसी रासायनिक के पास तो वह कहेगा, एक आदमी के शरीर में मुश्किल से चार रुपए बारह आने का सामान होता है, इससे ज्यादा का नहीं। कुछ लोहा होता है, कुछ केल्शियम होता है, कुछ फलां होता है, कुछ ढिकां होता है। अगर बाजार में खरीदने जाएं तो चार-पांच रुपए में सब मिल जाता है। क्या परेशान हो रहे हैं इसको प्रेम करने के लिए? शरीर में कुछ भी नहीं है। यह चार-पांच रुपए का सामान है, बाजार से खरीद लें, एक पेटी में रख लें। खूब प्रेम करें। वह बात बिलकुल ठीक कह रहा है। उसने आदमी के शरीर का विश्लेषण करके बता दिया कि इतना लोहा है, इतना फलां है, इतना यह है। इसमें ज्यादा कुछ है नहीं। क्यों परेशान हुए जाते हैं? इसमें प्रेम करने की बात कहाँ है। उसने एनालिसिस कर दी, उसने चीजों को तोड़ कर रख दिया।

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