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अमेरिकी यायावर

योगेश कुमार दानी

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प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :150
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9435
आईएसबीएन :9781613018972

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उत्तर पूर्वी अमेरिका और कैनेडा की रोमांचक सड़क यात्रा की मनोहर कहानी


हम पास ही के सबवे पहुँचे। कार से निकलते हुए मैंने मेरी एन से कहा, “यदि आप चाहें तो कार में ही बैठें, मैं आपकी रुचि के अनुसार सैंडविच बनवाकर ले आता हूँ।“ मैं सोच रहा था कि ऐसी बदहवास हालत में शायद वह अपने मन को स्थिर करने के लिए अकेली कार में इंतजार करना चाहे। परंतु मुझे कार से निकलते देख वह अचानक बोल उठी, “मैं भी साथ चलती हूँ।“ मैने उसके कार से निकल कर आने का इंतजार किया। कार से बाहर निकलने के बाद वह मेरी तरफ आई और मेरा हाथ पकड़कर मेरे साथ चलने लगी। मुझे इस तरह उसका हाथ पकड़ना अजीब लगा, किंतु मैं कुछ नहीं बोला।
हम दोनों सबवे का आर्डर देने काउंटर पर पहुँचे। हमेशा की तरह मैने अपने लिए वेजी पैटी वाला सैंडविच लिया और उसके लिए चिकन सैंडविच का आर्डर देने लगा, तो वह काउंटर पर खड़ी लड़की से बोली कि मुझे भी वेजी सेंडविच बना दो। हम दोनो अपने सैंडविच लेकर वहीं पड़ी कुर्सियों पर बैठ गये और हमने अपने सैंडविच वहीं खाये।  
सैंडविच खाने के बाद हम वहाँ से सीधे अपने होटल पहुँचे और अपने कमरे की ओर चले गये। कमरे में पहुँचकर मैने टीवी आन किया तो मेरी एन बोली, “क्या आप टीवी बंद कर सकते हैं?” अभी सोने के लिहाज से कुछ जल्दी थी, लेकिन उसके प्रतिरोध में मैंने कुछ नहीं कहा। हम दोनों आज के अनुभव से जिस तरह सहमे हुए थे, उस लिहाज से मैं भी अधिक बोलने की स्थिति में नहीं था। साढ़े आठ बजे तक हम दोनों कमरे में चुपचाप बिना कुछ बोले बुतों की तरह बैठे रहे।
जब कुछ समझ में नहीं आया तो मैं अपने सोने के कपड़े बदलकर अपने बिस्तर में लेट गया। कमरे में नीरव शांति थी। कुछ देर बाद वह भी अपने सोने के कपड़े बदलकर बिस्तर में लेट गयी। हम दोनों कुछ समय तक अपने-अपने बिस्तरों में चुपचाप लेटे रहे। अंत में मैने कमरे की बत्ती बुझा दी और उसे गुडनाइट कह कर बिस्तर में लेटकर सोने का उपक्रम करने लगा। मेरे दिमाग में रह-रहकर अभी भी उस काले भालू की आँखें घूम रहीं थीं। उन आँखों का हिंसक भाव अभी तक स्मृति में जड़वत् बना हुआ था। जैसे किसी डीवीडी प्लेयर पर चलती हुई पिक्चर को अचानक रोक दिया जाये, और रुकने के समय कोई बहुत हिंसक दृश्य आ रहा हो। मेरा मस्तिष्क लगभग सुन्न सा था। बाहर की स्ट्रीट लाइट का प्रकाश कमरे की खिड़कियों से आकर कमरे में हल्का उजाला फैला रहा था।
पता नहीं कितनी देर बाद, पर अंत मे मुझे नींद आ ही गई।
रात में सोते समय अचानक मुझे अनुभव हुआ कि कोई मेरे बिस्तर पर आ गया है। आधी नींद में जब मुझे समझ में आया कि मेरी एन भी मेरे ही बिस्तर पर आकर लेट गई है तब मैं चौंक कर उठने को हुआ। परंतु, इसके पहले कि मैं कुछ समझ पाऊँ कि क्या हुआ है, मेरी एन मुझसे लिपट कर लेट गई। मैं एकदम चौकन्ना हो गया और मेरी नींद बिलकुल खुल गई। मैं बिस्तर पर सीधा लेटा हुआ था, परंतु मेरी एन मुझसे चिपटकर लेट गई। उसका शरीर बहुत जोर से हिल रहा था, कुछ क्षणों के बाद ही मुझे यह बात समझ में आई कि असल में वह बुरी तरह से काँप रही थी। मैंने उसे अपने साथ सटे रहने दिया और उसकी पीठ धीरे-धीरे तब तक थपथपाता रहा,  कुछ समय बाद उसका काँपना तो कम हो गया, परंतु वह फिर भी बीच-बीच में सिहर जाती रही। इसी अवस्था में मेरी आँख कब लग गई मुझे पता ही नहीं चला।

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