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अमेरिकी यायावर

योगेश कुमार दानी

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प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :150
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9435
आईएसबीएन :9781613018972

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उत्तर पूर्वी अमेरिका और कैनेडा की रोमांचक सड़क यात्रा की मनोहर कहानी


अमेरिका में आने के बाद भारतीय भोजन के स्वाद का लालच तो हमेशा ही बना रहता है। लेकिन आम तौर पर रेस्तराँ के भोजन का स्वाद रेस्तराँ वाला ही होता है और भोजन पेट पर भारी पड़ता है। अन्य अनुभवों की अपेक्षाकृत यहाँ का भोजन स्वादिष्ट होने के साथ-साथ हल्का भी था। मैंने भोजन की लगभग सभी वस्तुएँ कम-से-कम एक बार अवश्य चखीं। भोजन के बीच में ही वेटर ने पूछा, “आप डोसा किस प्रकार का पसंद करेंगे?” अब तक मेरा पेट लगभग भर गया था, परंतु भोजन के स्वाद के कारण मैंने उसे मसाला डोसा लाने के लिए कह दिया। दोसा स्वाद में अच्छा था, पर मुझसे अधिक नहीं खाया गया। इसके अतिरिक्त मेरी मन गुलाबजामुनों में भी उलझा हुआ था। मुझे रुचि लेकर भोजन करते हुए देखकर ही मेरी एन ने भी संभवतः औरपचारिक सहमति में कह दिया, “भोजन अच्छा है।“  मेरा अंदाजा था कि अन्य देशों के लोगों की पसंद में भारतीय भोजन इतनी जल्दी नहीं आ पाता है। विशेषकर उन लोगों के लिए जो कि नमक और काली मिर्च को ही मसाला समझते हैं। लेकिन जब मेरी एन कुछ सब्जियाँ स्वयं लेकर आई, तब मेरी उत्कंठा कुछ कम हुई। यह अलग बात है कि, हो सकता है कि यह सब उसने मात्र औपचारिकता में ही किया हो!
भारतीय भोजन अपने सभी विशेषताएँ लिए हुए भी हर किसी के लिये भोज्य नहीं होता। विशेषकर उन लोगों के लिए जो कम मसालेदार और सादा भोजन पसंद करते हैं। मैं पहले यह बात नहीं जानता था, परंतु अब यहाँ अमेरिका में रहते हुए यह जान गया हूँ कि अमेरिकी अथवा योरोपीय लोग बहुत कम मसाले वाला और अधपका भोजन करने के अधिक अभ्यस्त होते हैं और उन पर हमारा मसालेदार भोजन भारी पड़ जाता है। भोजन करने के बाद हम होटल के लिए निकले। कार तक वापस पहुँचते हुए आवश्यकता से अधिक खा जाने के कारण मेरी हालत कुछ बिगड़ रही थी और मुझे उलझन भी हो रही थी। लेकिन अपनी व्यथा किससे कहता? मेरी एन को मेरी हालत क्या समझ आती!
कार में बैठने के बाद लगा जैसे कि रेस्तराँ के भोजन के मसाले अभी-भी मेरे आस-पास हवा में थे। मैंने अपनी तरफ की खिड़की खोल ली और खुली हवा में गहरी साँसें लेने लगा।
मुझे यह देखकर आश्चर्य हुआ कि इस रेस्तरां से वापस होटल पहुँचने के लिए जीपीएस केवल 5 मिनट का समय ही बता रहा था।  
आज मुझे व्यर्थ में इधर-उधर पैदल चलने के बाद भी अधिक थकान नहीं हुई थी। साथ ही चाँद पैलेस का अनुभव तो बहुत ही अच्छा रहा था। मेरी एन या तो संकोची स्वभाव की थी, या अत्यंत अल्पभाषी। यह भी हो सकता है कि हम लगातार नई-नई जगहों पर जा रहे थे उन सबका अनुभव और आज का भारतीय भोजन उसके लिए नितांत नये थे। मुझे नई जगहों को देखने की उत्सुकता और उत्तेजना थी, उसका मंतव्य कुछ ठीक से समझ में नहीं आ रहा था। उसने पहले ही कहा था कि कैनेडा जाना चाहती है, इसका अर्थ यह हुआ कि शायद वह कैनेडा किसी से मिलने ही जाना चाहती है, न कि घूमने। दोनों ही स्थितियों में मुझे कोई अड़चन नहीं थी। बस थोड़ा अटपटा लग रहा था। दूसरी तरफ मुझे प्रसन्नता थी कि मेरे होटल के कमरे का खर्च बँट रहा था और साथ में एक साथी भी था। होटल पहुँचकर अपने कपड़े इत्यादि बदल कर मैं नीचे उतरकर पार्किंग में टहलते लगा। ठंडी हवा में मसालों की महक धीरे-धीरे मेरे कपड़ों से निकल खुली हवा में मिलने लगी।
आज तो मैंने विश्व प्रसिद्ध “स्वतंत्रता की देवी” अर्थात् Statue of Liberty के दर्शन किए थे, पर उसके बाद अब कल मनुष्य निर्मित स्थलों की बजाए अमेरिका की धरती पर प्रकृति से सम्पर्क साधने की उत्सुकता प्रबल हो रही थी। किसी स्थान विशेष की विशेषता हमेशा वहाँ की वनस्पति, जलवायु और वातावरण में होती है।

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