मूल्य रहित पुस्तकें >> अमेरिकी यायावर अमेरिकी यायावरयोगेश कुमार दानी
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उत्तर पूर्वी अमेरिका और कैनेडा की रोमांचक सड़क यात्रा की मनोहर कहानी
लिबर्टी आइलैण्ड पर अच्छी तरह घूम लेने के बाद हमने निश्चय किया इस बार फेरी
लेकर न्यूयार्क के तट पर चलें और वहां पर भी देखा जाये। न्यूयार्क से लिबर्टी
आइलैण्ड की तरफ आखिरी फेरी साढ़े पाँच बजे आती थी। इसका मतलब हमारे पास लगभग
डेढ़ घंटा था जिसमें हम बैटरी पार्क और फ्रीडम टॉवर तक जा सकते थे। यह समझ में
आते ही हम फेरी की ओर लपके। मैं मन-ही-मन सोच रहा था कि यदि वहाँ पर भी लाइन
हुई और पहली बार में न जा पाये तो संभवतः जाना ही बेकार होगा। परंतु इस बार
हमें तुरंत ही फेरी मिल गई जो कि वापस जा रही थी। ऐसा लग रहा था कि अभी अधिकतर
लोग लिबर्टी द्वीप पर आना चाह रहे थे न कि वापस जाना। वापस जाने का समय तो एक
घंटे बाद आरंभ होने वाला था।
फेरी से निकलकर हम इधर-उधर देखने लगे। कुछ समय तक बैटरी पार्क से हडसन नदी और
अटलांटिक महासागर का मजा लेते रहे। फिर वहाँ से फ्रीडम टावर की ओर बढ़े। कुछ
रास्ता भटकने जाने के कारण हम जिस सड़क के सामने से निकले उस पर पत्थर का एक
साँड खड़ा था, उस सड़क का नाम पढ़ने पर यह मालूम हुआ कि यह तो वाल स्ट्रीट है
और हम न्यूयार्क स्टॉक एक्सचेंज के सामने खड़े हैं। यह वही जगह है, जहाँ दुनिया
की सारी आर्थिक शक्ति सिमटी हुई है। सारी नहीं तो कम-से-कम इतना तो है ही कि
दुनिया की आर्थिक शक्ति के लगभग आधे से अधिक की भाग्य-विधाता यही सड़क है और इस
पर बने कार्यालयों में होने वाले निर्णयों से अन्य सभी देशों का आर्थिक
कार्य-कलाप चलता है।
फ्रीडम टॉवर में घूमते हुए उस दिन की याद तरो ताजा हो गई जब यहाँ आतंकवादियों
ने हवाई जहाजों का प्रयोग करके तबाही मचा दी थी। हजारों लोग कुछ ही मिनटों में
मर गये। साधारण, अपने-अपने रोज के कामों में उलझे हुए लोग। कहने को तो वे
साधारण लोग थे, पर साथ-ही-साथ उनमें एक असाधारण बात यह थी कि वे अमेरिका की
आर्थिक शक्ति के प्रतीक थे। अमेरिका की आर्थिक शक्ति स्वयं में तो गलत नहीं है,
परंतु सफलता अक्सर सिर पर चढ़कर बोलती है। जब इस आर्थिक सफलता से प्रेरित जीवन
के तौर तरीके मध्यपूर्व एशिया के लोगों को असह्य हो गये तो उन्होंने इतना जघन्य
प्रतिशोध ले लिया।
मन में यही सब सोचता हुआ मैं वापस फेरी की ओर चल पड़ा। रास्ते में मैने मेरी एन
से पूछा, “सन 2001 में हुए नृशंस काण्ड के बारे में आप क्या सोचती हैं?
तो सहज उत्तर में वह बोली, “वह तो बहुत बुरा हुआ था।“ परंतु मुझे अधिक आश्चर्य
तब हुआ, जब उसने आगे यह भी जोड़ा कि अमेरिका को हर किसी के मामले में दखल नहीं
देना चाहिए। कुछ ऐसा ही मेरा मानना भी थी, परंतु यह मेरी सोच के परे है कि
योरोप में पला-बढ़ा व्यक्ति भी ऐसा ही सोचता है।
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