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सोज़े वतन (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :96
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8640
आईएसबीएन :978-1-61301-187

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सोज़े वतन यानी देश का दर्द…


जवाँमर्द की आवाज़ मद्धिम हो गयी, अंग ढीले पड़ गये, खून इतना ज़्यादा बहा कि खुद-ब-खुद बन्द हो गया, रह-रहकर एकाध बूँद टपक पड़ता था। आख़िरकार सारा शरीर बेदम हो गया, दिल की हरकत बन्द हो गयी और आँखें मुँद गयीं। दिरफ़िगार ने समझा अब काम तमाम हो गया कि मरनेवाले ने धीमे से कहा—भारतमाता की जय! और उसके सीने से खून का आखिरी क़तरा निकल पड़ा। एक सच्चे देशप्रेमी और देशभक्त ने देशभक्ति का हक़ अदा कर दिया। दिलफ़िगार पर इस दृश्य का बहुत गहरा असर पड़ा और उसके दिल ने कहा, बेशक दुनिया में खून के इस क़तरे से ज़्यादा अनमोल चीज़ कोई नहीं हो सकती। उसने फ़ौरन उस खून की बूँद को जिसके आगे यमन का लाल भी हेच है, हाथ में ले लिया और इस दिलेर राजपूत की बहादुरी पर हैरत करता हुआ अपने वतन की तरफ़ रवाना हुआ और सख्तियाँ झेलता आख़िरकार बहुत दिनों के बाद रूप की रानी मलिका दिलफ़रेब की ड्योढ़ी पर जा पहुँचा और पैगाम दिया कि दिलफ़िगार सुर्ख़रू और कामयाब होकर लौटा है और दरबार में हाज़िर होना चाहता है। दिलफ़रेब ने उसे फ़ौरन हाज़िर होने का हुक्म दिया। खुद हस्बे मामूल सुनहरे परदे की ओट में बैठी और बोली—दिलफ़िगार, अबकी तू बहुत दिनों के बाद वापस आया है। ला, दुनिया की सबसे बेशक़ीमती चीज़ कहाँ है?

दिलफ़िगार ने मेंहदी-रची हथेलियों को चूमते हुए खून का वह कतरा उस पर रख दिया और उसकी पूरी कैफ़ियत पुरजोश लहजे में कह सुनायी। वह खामोश भी न होने पाया था कि यकायक वह सुनहरा परदा हट गया और दिलफ़िगार के सामने हुस्न का एक दरबार सजा हुआ नजर आया जिसकी एक-एक नाजनीज जुलेखा से बढ़कर थी। दिलफ़रेब बड़ी शान के साथ सुनहरी मनसद पर सुशोभित हो रही थी। दिलफ़िगार हुस्न का यह तिलस्म देखकर अचम्भे में पड़ गया और चित्रलिखित-सा खड़ा रहा कि दिलफ़रेब मनसद से उठी और कई क़दम आगे बढ़कर उससे लिपट गयी। गानेवालियों ने खुशी के गाने शुरू किये, दरबारियों ने दिलफ़िगार को नज़रें भेंट कीं और चाँद-सूरज को बड़ी इज़्ज़त के साथ मसनद पर बैठा दिया। जब वह लुभावना गीत बन्द हुआ तो दिलफ़रेब खड़ी हो गयी और हाथ जोड़कर दिलफ़िगार से बोली ऐ जाँनिसार आशिक दिलफ़िगार! मेरी दुआएँ बर आयीं और खुदा ने मेरी सुन ली और तुझे कामयाब व सुर्ख़रू किया। आज से तू मेरा मालिक और मैं तेरी लौंडी!

यह कहकर उसने एक रत्नजड़ित मंजूषा मँगायी और उसमें से एक तख्ती निकाली जिस पर सुनहरे अक्षरों में लिखा हुआ था—

‘खून का वह आख़िरी क़तरा जो वतन की हिफ़ाजत में गिरे दुनिया की सबसे अनमोल चीज़ है।’’

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