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सप्त सरोज (कहानी संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :140
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8624
आईएसबीएन :978-1-61301-181

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सज्जनता का दंड

साधारण मनुष्य की तरह शाहजहाँपुर के डिस्ट्रिक्ट इंजीनियर सरदार शिव सिंह में भी भलाइयाँ और बुराइयाँ दोनों ही वर्तमान थीं। भलाई यह थी कि उनके यहाँ न्याय और दया में कोई अन्तर न था। बुराई यह थी कि वे सर्वथा निर्लोभ और निःस्वार्थ थे। भलाई ने मातहतों को निडर और आलसी बना दिया था। बुराई के कारण उस विभाग के सभी अधिकारी उनकी जान के दुश्मन बन गए थे।

प्रातः काल का समय था। वे किसी पुल की निगरानी के लिए तैयार खड़े थे, मगर साईस अभी तक मीठी नींद ले रहा था। रात को उसे अच्छी तरह सहेज दिया था कि पौ फटने के पहले गाड़ी तैयार कर लेना। लेकिन सुबह भी हुई, सूर्य भगवान् ने दर्शन भी दिए, शीतल किरणों में गरमी भी आयी, पर साईस की नींद अभी तक नहीं टूटी।

सरदार साहब खड़े-खड़े थककर एक कुर्सी पर बैठ गए। साईस तो किसी तरह जागा, परन्तु अर्दली के चपरासियों का पता नहीं। जो महाशय डाक लेने गये थे, वे एक ठाकुरद्वारा में खड़े चरणामृत की प्रतीक्षा कर रहे थे। जो ठेकेदार को बुलाने गये थे। रामदास की सेवा में बैठे गाँजे का दम लगा रहे थे।

धूप तेज होती जाती थी। सरदार साहब झुंझलाकर मकान में चले गए और अपनी पत्नी से बोले– इतना दिन चढ़ आया, अभी तक एक चपरासी का भी पता नहीं। इनके मारे तो मेरे नाक में दम आ गया है।

पत्नी ने दीवार की ओर देखकर दीवार से कहा– यह सब उन्हें सिर चढ़ाने का फल है।

सरदार साहब चिढ़कर बोले– तो क्या करूँ, उन्हें फाँसी दे दूँ।

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