नई पुस्तकें >> रूठी रानी (उपन्यास) रूठी रानी (उपन्यास)प्रेमचन्द
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रूठी रानी’ एक ऐतिहासिक उपन्यास है, जिसमें राजाओं की वीरता और देश भक्ति को कलम के आदर्श सिपाही प्रेमचंद ने जीवन्त रूप में प्रस्तुत किया है
सवेरा हुआ। राव जी का नशा उतरा। जिस छोकरी को रानी समझे हुए थे, उसे देखा तो पानी का घड़ा और चिलमची लिए शाही महल की तरफ जा रही है। समझ गए बड़ा धोखा हुआ। उसी वक्त शरमाए हुए महल में गए। वहां का सन्नाटा, महल की वीरानी और रानी की बेरुखी देखकर दिल बैठ गया। बोले–
रूठी बैठी सेज में मालदेव पिया को त्याग।
(ऐ बड़े रुतबेवाली नाजनीन उमादे, तू जिद में आकर क्यों अपने पिया से रूठी सेज पर बैठी हुई है?)
राव जी को देखते ही वह उठ खड़ी हुई पर मुंह से कुछ न बोली। भवों की कमान को खींचकर, उसमें पलकों के तीर पर निशाना लगाए हुए, हाथ मरोड़े, मुंह मोड़े गोरी पी से भरी बैठी है।
खवासें दूर-दूर चुप खड़ी थीं। भारीली का डर के मारे लहू सूखा जाता था। पर गानेवालियां बन्द न हुईं। वे गाने लगीं-
तुम्हें शराब किसने पिलाई।
राव जी ने बहुत कहा कि मैं नशे में था, इस वजह से ऐसी गलती हुई मगर रानी ने एक न सुनी। गानेवालियों ने भी राव के इशारे से बहुत से रूठे हुए को मानने वाले गीत गाए मगर रानी पर कुछ असर न हुआ। इस झमेले में दिन बहुत चढ़ आया। आखिरकार राव जी यह सोचकर कि फिर मना लेंगे, महल से बाहर निकल आए। उसी वक्त उनके सरदार भी रावल जी के पास से उठे।
राव जी ने फिर महल के अन्दर जाकर अपनी जान खतरे में डालना ठीक नहीं समझा। बाहर ही से रुखसती की दरख्वास की। रावल जी भी यही चाहते थे कि भेद न खुले। चुपचाप विदाई हो जाए।
उमादे राव जी के साथ जाने को राजी नहीं होती थी। राघोजी ज्योतिषी ने यह सुना तो उसने कहा कि कल तुम्हें राव जी की जान प्यारी थी, क्या आज वह प्यार जाता रहा? उनकी जान अभी तक खतरे में है इस वक्त रूठने का मौका नहीं है।
यह सुनकर रानी नर्म हुई। हिन्दू राजा की लड़की थी और हिन्दू धर्म को मानने वाली, जो पत्नी को पति की पूजा करने की शिक्षा देता है। मां के पास गयी, कुछ देर सखियों के गले मिलकर रोती रही, फिर दो घूंट पानी पिया और चुपचाप सुखपाल में बैठ गयी।
राव जी के कहने से उमा देवी ने भारीली को भी अलग एक रथ में बिठा लिया, गोया अपनी तबाही को अपने साथ ले चली। ज्योतिषी जी पहुंचाने के बहाने से साथ हो गए। उनके बेटे चण्डो जी पहले से राव के लश्कर में आ गए थे क्योंकि इन दोनों को डर था कि रावल जी कहीं पीछे से उनकी मरम्मत न करें। क्योंकि रावल जी को संदेह हो गया था कि इन्हीं दोनों की साजिश से शिकार हाथ से गया।
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