नई पुस्तकें >> रंगभूमि (उपन्यास) रंगभूमि (उपन्यास)प्रेमचन्द
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नौकरशाही तथा पूँजीवाद के साथ जनसंघर्ष का ताण्डव; सत्य, निष्ठा और अहिंसा के प्रति आग्रह, ग्रामीण जीवन में उपस्थित मद्यपान तथा स्त्री दुर्दशा का भयावह चित्र यहाँ अंकित है
ताहिर–हुजूर, अब आइंदा ऐसी गलती न होगी।
जॉन सेवक–अब तक आपने इस मद में जो रकम वसूल की है, वह आमदनी में दिखाइए। हिसाब किताब के मामले में मैं जरा भी रिआयत नहीं करता।
ताहिर–हुजूर, बहुत छोटी रकम होगी।
जॉन सेवक–कुछ मुजायका नहीं, एक ही पाई सहीं; वह सब आपको भरनी पड़ेगी। अभी वह रकम छोटी है, कुछ दिनों में उसकी तादाद सैकड़ों तक पहुंच जाएगी। उस रकम से मैं यहां एक संडे-स्कूल खोलना चाहता हूं। समझ गए? मेम साहब की यह बड़ी अभिलाषा है। अच्छा चलिए, वह जमीन कहां है जिसका आपने जिक्र किया था?
गोदाम के पीछे की ओर एक विस्तृत मैदान था। यहां आस-पास के जानवर चरने आया करते थे। जॉन सेवक यह जमीन लेकर यहां सिगरेट बनाने का एक कारखाना खोलना चाहते थे। प्रभु सेवक को इसी व्यवसाय की शिक्षा प्राप्त करने के लिए अमेरिका भेजा था। जॉन सेवक के साथ प्रभु सेवक और उनकी माता भी जमीन देखने चलीं। पिता और पुत्र ने मिलकर जमीन का विस्तार नापा। कहां कारखाना होगा, कहां गोदाम, कहां दफ्तर कहां मैनेजर का बंगला, कहां श्रमजीवियों के कमरे, कहां कोयला रखने की जगह और कहां से पानी आएगा, इन विषयों पर दोनों आदमियों में देर तक बातें होती रहीं। अंत में मिस्टर सेवक ने ताहिर अली से पूछा–यह किसकी जमीन है?
ताहिर–हुजूर, यह तो ठीक नहीं मालूम, अभी चलकर यहां किसी से पूछ लूंगा, शायद नायकराम पंडा की हो।
साहब–आप उससे यह जमीन कितने में दिला सकते हैं?
ताहिर–मुझे तो इसमें भी शक है कि वह इसे बेचेगा भी।
जॉन सेवक–अजी, बेचेगा उसका बाप, उसकी क्या हस्ती है? रुपए के सतरह आने दीजिए, और आसमान के तारे मंगवा लीजिए। आप उसे पास भेज दीजिए, मैं उससे बातें कर लूंगा।
प्रभु सेवक–मुझे तो भय है कि यहां कच्चा माल मिलने में कठिनाई होगी। इधर तंबाखू की खेती कम करते हैं।
जॉन सेवक–कच्चा माल पैदा करना तुम्हारा काम होगा। किसान को ऊख या जौ-गेहूं से कोई प्रेम नहीं होता। वह जिस जिन्स के पैदा करने में अपना लाभ देखेगा वही पैदा करेगा। इसकी कोई चिंता नहीं है। खां साहब, आप उस पंडे को मेरे पास कल जरूर भेज दीजिएगा।
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